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मिश्रबंधु

२२ मिश्रबंधु-विनोद - विवरण --श्रावस्ती के चित्रकार-कुल में उत्पन्न हुए थे । सिद्ध कण्हपा के शिष्य थे। उन्हीं खे इनके ससय का पता लगता है। चर्या- गीति से इनकी एक गीति लिखी जाती है- राग मल्लारी ३५ एत काल हाँउ अच्छिलें स्वमोहें, एवं मइ बुझिल सद्गुरु बोहे । ध्रु० एचे चिरान भकुंणठा, गण समुदे टलिया पइठा । ६० पेखमि दह दिह सर्वइ शून, चित्र विहुल्ने पाप न पुरण । ६० बाजुले दिल मोहकखु मणिश्रा, मइ अहारिल गणत पणियाँ । ध्रु. भादे भणइ असागे लइश्रा, चित्रराय मइ अहार कएला । ध्रु. आम-(३) महीपा (महिल) (सिद्ध ३७)। समय-सं० १०० के लगभग । ग्रंथ-वायुतत्त्व-दोहा-गीतिका । विवरण-यह सहाशय सगध देश के शूद्र थे। इनके गुरु सिद्ध कराहपा थे। तंजूर में इनका ऊपर लिखा व्रथ मिला है, जो पुरानी मगही का है। यह महीपा और महीधरपाद एक ही जान पड़ते हैं। चर्यागीति से, जो भिन्न-भिन्न कवियों की रचनाओं का एक संग्रह है, इनकी गीति लिखी जाती है । इनका समय कराहपा के आधार पर लिखा गया है। राग भैरवो तिनिएँ पाटे लागेलि रं अणह कलण घण गाजइ, तासुनि मार भयंकर रे सब मंडल सएल भाजइ । मातेल चीअ-गअंदा धावइ निरंतरगणंत तुसे धोला । ध्रु० पाप-पुण्य वेणि तिमि सिकल मोडिन खंभाठाण, गण टाकलि लागिरे चित्ता पइठ णिवाना । ध्रु. महारस पाने मातेल रे तिहुअन सएल उएरती, पंच विषय रे नायक रे वियख को बीन देखी । ध्रु०