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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण १६ A लोण तरुत्रा सोर किपि ण थाक्ति, लिन्न परिवारे महासुहे थाकिड । ६० चउकोडिभंडार मोर लइञा सेस, जीवंत सइलें नाहि विशेष ।' ६० नाम--(१३) करहपा (सिद्ध १७) या कर्णपा और कृष्णपा भी था। समय-सं०८० के लगभग । ग्रंथ-कान्हपादगीतिका, महाढुंढनामूल, वसंततिलक, असंबंध- दृष्टि, वज्रगीति और दोहा-कोष मगही भाषा में हैं। इनके अतिरिक्त इनके और भी बहुत-से ग्रंथ संस्कृत या पाली में हैं। ये सब ग्रंथ तंजूर में हैं। विवरण-इनका जन्म कर्णाटक में हुआ था । जाति के ब्राह्मण थे । महाराज देवपाल के समय में थे। सं०८६६-६०६ तक जिनके राज्य का समय था । इनके गुरु का नाम सिद्ध जालंधरपाद है। इनको ८४ सिद्धों में बहुत बड़ा पंडित कहते हैं। इनके सात-पाठ शिष्य चौरासी सिद्धों में गिने जाते हैं। धर्मपा, कंतलिपा, महीपा, उलिपा और भदेपा थे, तथा कनखला और मेखला दो योगिनियाँ थीं। जवलिपा इनके प्रशिष्य थे उदाहरण- अागम बेन पुराणे, पंडित मान वहति : पक्क सिरीफल अलि जिस वाहेरित श्रमयति । अहण गमइ उहण जाइ, वेणि-रहिअ तसु निश्चल पाई। भणइ कण मन कहवि न फुटइ, निश्चल पवन धरिशि घर बत्तइ । एकरण किजा मंत्र ण तंत, णि घरशि लइ केलि करंत । शिम धर घरिणी जावण मजइ ताव कि पंच वर्ण विहरिजइ । जिमि लोण विलिजई पाणिएहि, तिम घरणी लइ चित्त समरस जइ तकखणे, जइ. पुणु ते सम नित्त । । , .