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मिश्रबंधु

२०४ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९५० उदाहरण- . बैंचि के चीर शरीर उघारत जो घर ते हम कुंजन श्रावा और मैं का ले कहीं सक भारी के तोरि के फूलन हार गिरावा । रीति कुरीति सवै उनकी 'रघुनाथ' न चीन्हत नारि परावा; री सखि ए कोउ सजन का, अरिना सखि, ना सखि कुंज की हावा । X X x नाम--( ३५०५) मुरारिदानजी कविराजा। यह महाशय जोधपुर-नरेश के प्राश्रय में रहते और उनके राज्य के एक ऊँचे कर्मचारी थे । इन्होंने जसवंत-जसोभूपण-नामक अलंकार का एक बढ़िया तथा भारी ग्रंथ ५१ पृष्ठों का सं० १९५० के लग- भग बनाया । यह ग्रंथ सं० १९५४ में प्रकाशित हुया । यह महाशय संस्कृत के अच्छे पंडित थे, और अलंकारों के शुद्ध लक्षण निरूपण करने में इन्होंने अच्छा श्रम किया । इन्होंने अलंकारों के नामों ही से उनके लक्षण निकाले और गद्य की भी अच्छी रचना की । इनका स्वर्गवास प्रायः सं० १९६६ के निकट हुआ। उदाहरण कैसी अली की भली यह बानि है देखिए पीतम ध्यान लगाय के छाक गुलाब स.धू सों मुरारि सु बेलि नवेलिन में विरमाय के। खेलत केतकी जाय जुहीन में केलत मालती-वृंद अवाय के; श्राज जो जोवत खोवत दौस पै सोवत है नलिनी सँग प्राय के नाम-(३५०६) रघुनाथप्रसाद शर्मा (करतार कवि), कचूरा, जिला सीतापुर । जन्म-स्थान-कुदेरा (जिला सीतापुर)। ग्रंथ-स्फुट छंद । विवरण-आप काव्य-कला-कुशल पं० वैद्यनाथ के प्रपौत्र तथा पं० प्रयागदत्त (परवन) शुक्ल के पुत्र हैं। आपने एक हज़ार से H