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मिश्रबंधु

पूर्व नूतन २०३ उदाहरण- है नभ में क्या घटा की छटा छए भानु नए उनए धन श्यामा । नीचे निहारिए हार पहार में है वरसा के बहार की सामा । वाहवा कैसा समै है सुहावना शाम को सावन को अभिरामा देखिए ना यह सामा के खेत हैं देत हैं कैसे कबूतर कामा । नाम--( ३५०४) महावीरप्रसाद मालवीय, गोपीपुर, जिला मिर्जापुर। जन्म-काल-सं० १९२५ । प्रथ-(१ ) अभिनव विनामसागर, ( २ ) रामरसोदधि, (३) रसराजमहोदधि वैद्यक, (४) बाल-तंत्र वैद्यक, (५) होली- वहार, (६) बरसा-नहार, (७) मानस-प्रबोध, (८) वीर निबंटु वैद्यक, (१) वैद्य-दिवाकर । विवरण-आप कुछ दिन प्रियंवदा मासिक पत्रिका के संपादक भी रहे । वैचक पर आपके ग्रंथ अच्छे हैं । श्राप पं० वैद्यनाथ मिश्र के पुन्न थे। मगध की शिक्षा प्रणाली के अनुसार बारह वर्ष की अवस्था तक अमरकोश, सिद्धांतकौमुदी, रधुवंशादि काव्य आपको घर पर ही पढ़ाए गए। श्रागे श्राप संस्कृत-कात्र के अच्छे मर्मज्ञ तथा कवि हुए। हिंदी-भाषा से श्रापको प्रेम था ही, संस्कृत-साहित्य में भी आपने विशेपत्तया पांडित्य प्रात किया था। कहा जाता है कि एक घंटे में यह महाशय ५० श्लोकों की रचना अच्छी तरह कर लेते थे। श्राप काव्य-रचना के अतिरित चित्रकला तथा संगीत में भी निपुण थे। गया-प्रांत के पीडाचक्र ग्रामवाले बाबू देवनसिंह के यह आश्रित थे, और उन्हीं की दी हुई जमींदारी का उपभोग इनके वंशज आज तक करते हैं।