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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९४७ विवाह किया, फिर रात्रि-भर सुख से अपने घर में रहे और प्रातःकाल होते ही राजा विराट की सभा में पाए । वह राजा विराट की सभा मणियों से खिंची हुई, फूल की सालाओं से सुशोभित और सुगंधित जल से छिड़की थी। उसी में सब राजायों में श्रेष्ठ पांडव लोग आकर बैठे। उनके बैठते ही सब राजाओं से पूजित बूढ़े महाराज विराट और द्रुपद श्रासनों पर बैठे । उनके पश्चात् श्रीकृष्ण बैठे । द्रुपद के पास कृतवर्मा और बलदेव बैठे । राजा विराट के पास महाराज युधिष्ठिर बैठे । राजा द्रुपद के सब पुत्र, भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव, प्रद्युम्न, सांब, अभिमन्यु और राजा विराट के महावीर पुत्र, ये सब एक स्थान पर बैठे। पांडवों के तुल्य रूपवान् और पराक्रमी द्रौपदी के पाँचों महावीर पुत्र मणिजटित सोने के सिंहासनों पर बैठे । जब उत्तम वस्त्र और नाभूषणधारी राजा लोग अपने-अपने योग्य आसनों पर बैठ चुके, तब वह राजाओं से भरी सभा ऐसे शोभित हुई, जैसे निर्मल तारों से भरा आकाश सोहता है। समय --संवत् १९४८ नाम-(३४७६ ) जगन्नाथदास रत्नाकर बी० ए० ( वैश्य), काशी। जन्म-काल-सं० १९२३ । कविता-काल-सं० १९४८ । विवरण-बहुत काल आप अयोध्या-नरेश के यहाँ निजी अमात्य ( प्राइवेट सेक्रेटरी ) रहे। आपने हिंडोला, समालोचनादर्श, साहित्य-रत्नाकर, धनाक्षरी-नियम-रनाकर और हरिश्चंद्र तथा उद्धव- शतक-नामक ग्रंथ रचे । कई वर्ष तक आपने 'साहित्य-सुधानिधि' नाम्नी मासिक पत्रिका का संपादन किया। आप व्रजभाषा के एक उत्कृष्ट कवि थे । बिहारी-रखाकर आपका अच्छा टीका ग्रंथ है।