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मिश्रबंधु

सं० १९४७ पूर्व भूतन पर सभा से पदक आदि भी पाए । श्रापके निम्नलिखित ग्रंथ हमने देखे हैं- F-लखनऊ की नवाबी, हमारा प्राचीन ज्योतिष, करछा, सुघड़ दरजिन, मिस्ट्रीज कोर्ट प्रॉक लंदन के कुछ अंश का अनुवाद और ज्यापारिक कोश । आप एक सज्जन पुरुष तथा मिन-वत्सल थे। चित्त की सफ़ाई श्रापमें आधिक्य से श्री.। आपकी रचनाओं में साहित्यिक गौरव पर ध्यान न होकर उपयोगिता पर था। नाम-(३४७६) वालमुकुंद गुप्त । जन्म-काल-सं० १९२२॥ रचना-काल-१९४९ । विवरण---इनका जन्म सं० १६२२ से रोहतक-जिले में हुआ। इनको हिंदी-लेखन से सदैव बड़ी रुचि थी, और इन्होंने पत्रों के संपादन से ही अपनी जीविका भी चलाई। आपने सात वर्ष बगवासी का संपादन किया, और फिर भारतमित्र के नाप जीवन-पर्यंत संपादक रहे । रत्नावली नाटिका, हरिदास, शिवशंभु का चिट्ठा, स्फुट कविता, खेलौना आदि पुस्तकें भी रची। इनकी गद्य और पद्य-रचनाओं में सजीवता तथा मज़ाक की मात्रा व ब थी, और वे बड़ी मनोरंजक होती थीं। होली के संबंध में ये टेस्सू आदि ख व मार्के के बनाते थे। इनका शिवशंभु का चिट्ठा एक बड़ा ही लोकप्रिय ग्रंथ है गुप्तजी एक बड़े ही जिंदादिल लेखक थे तथा समालोचना भी अच्छी करते थे। इनका शरीपात सं० १९६४ में हुआ। उदाहरण- हुए मारली पद पर पक्के बरादरिक के लग गए धक्के । बंगाली समझे पौ छक्के होली है भइ होली है। धंग-भंग की बात चलाई काटन ने तकरीर सुनाई । तब मुरली ने तान लगाई होली है भइ होली है । होना था सो हो गया भैया अव न मचानो तोबा देया । , , . 1 .