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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद इतिहास के विषय पर हमारे प्राचीन कवियों ने परिश्रम नहीं किया । पुराण, भारत श्रादि परस प्राचीन ग्रंथ इतिहास ही हैं, किंतु हिंदी में न होने से हमसे असंबद्ध हैं। हमारे प्राचीन हिंदी- कवियों ने खंड काव्य, रासो श्रादि रचे, जो ऐतिहासिक साहित्य होने पर भी विशुद्ध इतिहास नहीं हैं । इतिहास के लिये न केवल सत्य घटनाओं का कथन आवश्यक है, वरन समय का शुद्ध एवं सालवार निरूपण उसका प्राण ही है। हिंदी में इतिहास- कथन भारतेंदु-काल से प्रारंभ हुआ। उन्होंने स्वयं कई ऐसे छोटे ग्रंथ तथा जीवन-चरित्र रचे । फिर भी साधारण कथनों के अतिरिक्त वेगवेषणात्मक न थे। हमारे सबसे प्राचीन इतिहास-लेखक महा- महोपाध्याय रामबहादुर पंडित गौरीशंकर-हीराचंद अोझा (१९२०) हैं, जो अजमेरवाले अजायबघर के क्यूरेटर हैं । इतिहास आपका न केवल शौक, वरन जीविका का भी साधन है। थापने कई अच्छे इति- हास-ग्रंथ रचे हैं, जैसा कि श्रापळे विस्तृत विवरण में लिखा गया है। इतना फिर भी समझ पड़ता है कि अँगरेज़ों की भाँति भारतीय गण्य-सान्य महाशयों अथवा ग्रंथों को कल्पित प्रमाणित करने में आपको कुछ आनंद-सा आता है। लाला सीताराम ने अयोध्या का एक गवेषणा-पूर्ण उत्कृष्ट इतिहास हाल ही में लिखा है। जोधपुरवाले मुंशी देवीप्रसाद भी हमारे अच्छे गोषणा-पूर्ण इतिहास- कार थे। लाला लाजपतराय ने कुछ दिन हुए, प्राचीन भारत का एक भारी इतिहास रचा। पंडित हरिमंगल मिश्र भी इतिहास-लेखक थे, जिनका रचनारंभ-काल पूर्व नूतन परिपाटी में आता है। इस समय के अन्य लेखकों में निम्नलिखित सज्जनों के नाम गिनाए जा सकते हैं-हरिचरणसिंह (१६४७ ), हनुमंतसिंह (१६४७), रामचंद्र दुवे (१९५५), गंगाप्रसाद गुप्त (१९५७), कमलाप्रसाद (१९५६), बदरीप्रसाद त्रिपाठी ( १६१६ ), सुंदरलाल