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मिश्रबंधु
मिश्रबंधू-विनोद | १३२
उदाहरण----
श्रीमनारायनजू के चरन को सेवक श्री,
रामानुज संप्रदाय शिष्यपद पायो हों;
रसिक-सभा में बैठि बोलिबे को चाव मेरे,
वोऊ मोह चाहे इहि लाभ लोभ छायो हों।
विश्वर वंश 'रामनारायण' नाम नीको,
कविता में छाप 'रस राशि' हेरि ल्यायो हों;
सबको सुहायो ससी सास गुन गायो भयो,
मेरो मन भायो सब ही को मन भायो हों।
नाम--(३४४३) रंगनाथ।
ग्रंथ-(१) सरजूलहरी, (२) भक्ति-मंजरी।
नाम--(३४४४) रंगीदास।
ग्रंथ-समय-प्रबंध।
विवरण---राधावल्लभी।
नाम--(३४४५) रंगोलदास, जूनागढ़, काठियावाड़।
ग्रंथ-(१) द्रौपदी-पट-निधान, (२)नाममाला।
विवरण---आप बड़नगरा नागर ब्राह्मण थे।
नाम--(३४४६) राजकुमार श्रीशिवेंद्र साही।
ग्रंथ-स्फुट पद्य-रचनाएँ।
विवरण-आपका उपनाम लालसाहब था। यह जाति के भूमिहार ब्राह्मण और महाराज बेतिया के जामातृ थे। आप राजधानी माँझा,ज़िला छपरा के निवासी तथा पंडित जगन्नाथ दीक्षित के बंशज थे।
नाम--(३४४७) राधावल्लभ ।