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मिश्रबंधु
मिश्रबंधु-विनोद
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पानि के जंतु कहाँ पहिचानत ग्रीष्म के तप की गरदी की;
केसरि की करिहै कह किम्मत है न परीख जहाँ इरादो की।
कायर को न कछू परिहै कल सुरन को सुधि है मरदी की।
बेदरदी न प्रवीन चहे कछु जानहिगो दरदी दरदी की।
नाम---(३४३१) मंच्छ (मंच्छराम), जोधपुर ।
ग्रंथ-रघुनाथ रूपक पिंगल (मारवाड़ी भाषा में)।
नाम---(३४३२) माधवसिंह राजा आगता ।
ग्रंथ--रस-विलास।
नाम---(३४३३) मानिकदास ।
ग्रंथ-(१) संतोष-सुरतरु, (२) सत्संग-प्रभाव, (३) राम-रसायन, (४) कवित्त-प्रबंध, (५) आत्म-विचार ।
विवरण-श्राप अहमदाबाद के पाटीदार थे। आप एक अच्छे विद्वान थे । कहा जाता है, कारण-वशात् आपने वैराग्य धारण कर लिया था, और साधु होकर उज्जैन मे जा बसे ।
नाम---(३४३४) मीरा सैयद ताइर ।
ग्रंथ--गुन-सार।
नाम---( ३४३५) मूदजी।
ग्रंथ---कविनिया की टीका ।
विवरण---राजापूताने के चारण ।
नाम---(३४३६) मूलचंद ज्ञानी ।
प्रथ---(१) पदार्थ-संजूषा, (२) तत्त्वानुसंधान ।
विवरण---आप वैश्य थे।
नाम---(३४३७ ) मोहनदास महंत, गोरखपुर ।
ग्रंथ-बृहत् सनातन धर्म-सार (पृष्ठ ३६८ गद्य द्वि० त्रै० रि०)।