यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१३५
१३५
मिश्रबंधु
अज्ञात काल १३९
गिरिन को ढाहैं, सातौ सिंधु अवगाहैं, तोरें
अरिन की आहैं ब्रज बाहैं बजरंग की।
नाम-(३४२७) मनिराम ।
ग्रंथ-(1)गोप-पचोसी, (२) रस-रहस्य की टीका, (३) बलभद्र कृत 'नख-शिख की टीका। (३) बलभद्र-कृत 'नख-शिख' की टीका ।
नाम--(३४२८) महावीरदास ।
ग्रंथ---छंद-रामायण ।
नाम--(३४२६) महासिंधु ।
ग्रंथ-छंद-शृंगार (पिंगल-ग्रंथ)।
विवरण-श्राप मारवाड़ के निवासी थे।
नाम--( ३४३० ) महिरामनजी उर्फ सागर, राजकोट, काठियावाड़।
ग्रंथ----प्रवीण-सागर ।
विवरण-आपके उक्त बृहत् ग्रंथ में ८४ अध्याय हैं । आपका शरीर-पात हो जाने पर इस ग्रंथ का कुछ अंश श्रीगोविंद गिल्लाभाई ने बनाकर पूर्ण किया।
उदाहरण---
कटि फेट छोरन में भृकुटी मरोरन में,
शीश पेंच तोरन में अति उरझाय के;
मंद-मंद हासन में, . वारुनी विलासन में,
श्रानन उजासन में चकचौंध चाय के।
मोती-मनि मालन में सोसनी दुसालन में,
चिकुरी के तालन में चेटक लगाय के;
प्रेम बान दे गयो न जानिए कितै गयो,
सुपंथी मन लै गयो झरोखे ग लाय के ।