पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/९९

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१०३० मिनबंधु-विनोद इन महाराज ने संवत् १६०० के लगभग रागसागरोद्भव-नामक एक बृहत् ग्रंथ संगृहीत करके कलकत्ते में मुद्रित कराया था, जिसमें २०५ भक्त तथा कवियों के पद संगृहीत थे । इसमें बहुत-से ऐसे कवियों के पद संगृहीत हैं, जिनकी कविता अन्यत्र प्रायः नहीं मिलती । इस संग्रह से इतिहास-साहित्य का ,भी बड़ा उपकार हुआ है। यदि यह संग्रह न हुआ होता, तो शायद इतने सब कवियों के नामों का मिलना असंभव था। इनकी कविता तोष कवि की श्रेणी की समझनी चाहिए। उदाहरण- सैननि बिसरै बैननि भोर । बैन कहत कासों, पिय हिय ते बिहसत काहि किसोर । दुख मेटत भेटत तुमको नहि चुंबन देव न थोर । (१७९४) गणेशप्रसाद फर्रुखाबादी ये महाशय जाति के कायस्थ थे और फर्रुखाबाद में हलवाई का व्यापार करते थे। ऐसा साधारण व्यापार करके भी इन्होंने कविता की ओर ध्यान दिया। ये परमोत्तम रचना करने में समर्थ हुए। इन्होंने फ्रिसानेचमन, बारहमासा, ऋतुवर्णन, शिखनख और छंदलावनी- नामक ग्रंथ रचे हैं, जो प्रायः सब प्रकाशित हो चुके हैं और सभी पुस्तक बेचनेवालों के यहाँ मिलते हैं । इनकी समस्त कविता बहुत करके पदों में है, और उसका विशेषांश खड़ी बोली को लिए हुए है। इनकी लावनियाँ इतनी प्रसिद्ध हैं कि उतने बड़े-बड़े कवियों सक के काव्य नहीं हैं। उनमें अलौकिक स्वाद, अनूठापन एवं बल है। ऐसी सजीव कविता बड़े-बड़े कवि रचने में समर्थ नहीं हुए हैं । हमने इनके कई ग्रंथ देखे हैं, पर इस समय हमारे पास इनका फ्रिसानेचमन-मात्र है। इनकी रचना के हमने बड़े-बड़े चमत्कारिक तथा उड़ते हुए पद देखे हैं, पर इस समय साधारण ही पद हमें उपलब्ध हैं। आपके छंद बहुत