पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/९७

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१०२८ मिश्रबंधु-विनोद बुधि बिनु नर जैसे, पंछी विनु पर जैसे, सेवा बिनु डर जैसे, नीति विनु भूप है। (१७९०) देव कवि काष्ट-जिह्वा, बनारसी ये महाराज संस्कृत के बड़े भारी विद्वान थे। आपने एक दने गुरु से विवाद करके प्रायश्चित्तार्थ अपनी जीभ पर काष्ठ की खोल चढ़ाकर सदा को बोलना बंद कर दिया। इन्होंने ये ग्रंथ बनाए- विनयामृत, रामलगन [प्र० ० रि० ], रामायणपरिचर्चा [ खोज १६०४], वैराग्यप्रदीप और पदावली सात कांड । (खोज १९०१) (१८७)। इनकी कविता विशेषतया भगवद्भक्ति के विषय पर होती थी। वह प्रशंसनीय है । इनकी गणना तोष की श्रेणी में की. जाती है। महाराजा बनारस के यहाँ इनका बड़ा आदर होता था। उदाहरण- जग मंगल सिय जू के पद हैं। (टेक) जस तिरकोण यंत्र मंगल के अस तरवन के कद हैं। मलहि गलावहिं ते तन मन के जिनकी अटक विरद हैं। मंगल हू के मंगल हरि जहँ सदा बसे ए हद हैं॥ ॥ नाम-(१७९१) रत्नहरि। ग्रंथ-सत्योपाख्यान, अर्थात् रामरहस्य का भाषा उल्था । रचनाकाल-१८ । विवरण-साधारण श्रेणी । ग्रंथ दोहा, चौपाइयों में है। कहीं- कही और छंद भी हैं। इसमें १२५ पृष्ठ हैं । यह ग्रंथ हमने दरबार पुस्तकालय छतरपुर में देखा। च० ० रि० में इनके दाशरथो दोहावली, इराडूरार्थ दोहा- वली, जमक-दमकदोहावली, रामरहस्य पूर्वार्द्ध तथा: रामरहस्य उत्तरार्द्ध-नामक ग्रंथ मिले हैं। उदाहरण-