पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/९६

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परिवर्तन-प्रकरण रामपरसन तेरे कर मैं कृपान के, फते की फरमान राखै सान हिंदुआन की ॥२॥ मंजु मलयाचल के पौन के प्रसंगन ते, लाल-लाल पल्लव लवान लहकै लगे; फूलै लगे कमल गुलाब श्रावबारे धने, संकर पराग भू-अकास बहकै लगे। बोलै लगे कोकिल भनंत भौंर डोलै लगे, चोप सों अमोलै मकरंद चहकै लगे, नेकौ ना अटक चढ़यो काम को कटक चारु, - चास्यौ ओर चटक सुगंध महकै लगे ॥३॥ विवरण इनका कविताकाल १८६ जान पड़ता है। नाम-(१७८९) निहाल । अंथ-~-(.) महाभारत भाषा, (२) साहित्यशिरोमणि (१८९३), (३) सुनीतिपंथप्रकाश (१८९६), (४) सुनीतिरनाकर (१०२)। रचनाकाल-१८९६ | [खोज १९०३, १६०१ ] विवरण- ये राजा करमसिंह और नरेंद्रसिंह दोनों पटियाला- नरेशों के यहाँ थे। हम इन्हें साधारण श्रेणी में रक्खेंगे। उदाहरण जल बिनु सर जैसे, फल विनु तरु जैसे, . सुत बिनु घर जैसे, गुन विनु रूप है। सस्त्र विनु वीर जैसे, फर बिनु तीर जैसे, खाँड़ बिनु खीर जैसे, दिन विनु धूप है। दया बिनु दान, गुन बिनु ज्यों कमान, जैसे तान बिनु गान, जैसे नीरहीन कूप है।