पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/९५

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१०२६. मिश्रबंधु-विनोद (१७८८)शंकर कवि ये महाशय कवि धनीराम के पुत्र और कवि सेवकराम के ज्येष्ठः भ्रावा, असनी निवासी थे। आप बाबू रोमप्रसन्नसिंह रईस काशी के यहाँ रहे । इनका जन्मकाल निश्चित रूप से विदित नहीं है, परंतु सेवकराम के पूर्वज होने से अनुमान किया जा सकता है कि ये लगभग संवत् १६९ में उत्पन्न हुए होंगे । इनके वंश इत्यादि का विशेष विवरण कवि सेवकराम के वर्णन में द्रष्टव्य है। इनका कोई ग्रंथ हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुना, परंतु सेवकजी की जीवनी से विदित होता है कि इन्होंने ग्रंथ भी बनाए हैं। यह समालोचना: इनकी स्फुट कविता के आधार पर लिखी गई है। इनकी रचनाः रस-पूर्ण एवं भाषा प्रशंसनीय है। ये महाशय तोष कवि की श्रेणी. के हैं। उदाहरण-स्वरूप तीन छंद उद्धृत किए जाते हैं- सोहत श्रकास मैं अनिंद इंदु रूप साजि, संकर बखानै दीह दुति को धरत है; सीतल बिमल गंग-जल कै महीतल मैं, परम पुनीत पाप-पंजनि दरत है। पैठि के पताल मैं रसाल सेस-रूप राजै,, कहाँ लौं गनाऊँ यौं समंस बिहरत है; रावरो सुजस भूप रामपरसनसिंह, श्रोक-झोक तीनो लोक पावन करत है ॥ १॥ कैधौं तेज बाड़ब की सोहै धूम धार कैधौं, दीन्हीं उपहार बन बासव प्रमान की; संकर बखानै उसै खल को भुअंगिनी-सी, देखी चारु कीरति निकेत या विधान की। कैधौं तेरे बैरिन के बंस तारिबे को, रन-सागर मैं सेतु मग सुर-पुर जान की;