पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/९४

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१०२५ परिवर्तन-प्रकरण १६५४ के ग़दर में इन्होंने बहुत अच्छा प्रबंध किया, जिस पर दरबार से इनको ताजीम हाथी; कटारी इत्यादि मिली । संवत् १९१६ में आगरे में दरबार हुआ, जिसमें इन्हें जी० सी० एस० आई० का खिताब मिला । संवत् १९२३ में दरबार में महारुद्रयाग हुआ, जिसका प्रबंध आपने उत्तम किया । आप दस्तकारी में भी बड़े चतुर थे। कविता भी आपकी सरस तथा प्रशंस- नीय होती थी, आपकी गणना तोष की श्रेणी में की जाती है। उदाहरण- बदन मयंक पै चकोर है रहत नित, पंकज नयन देखि भौंर लौं गयो फिरै, अधर सुधारस के चाखिबे को सुमनस , · पूतरी नैनन के तारन छयो फिरै । अंग-अंग गहन अनंग को सुभट होत , बानि गान सुनि उगे मृग लौं ठयो फिरै ; तेरे रूप भूप आगे पिय को अनूप मन , धरि बहु रूप बहुरूप सो भयो फिरै ॥१॥ चंद्र मिस जा को चंद्रसेखर चढ़ावें , सीस पट मिस धारै गिरा मूरति सबाब की; चंदन के मिस चारु चर्चत अगर मार , रमा मिस हरि हिय धारै सित श्राब की। भूप रामसिंह तेरी कीरति कला की काँति , भाँति-भाँति बढ़े छबि कवि के किताब की; मित्र सुख संगकारी प्राब माहताब की त्यौं , सत्रु-मुख-रंगहारी ताब आफताब की ॥ २ ॥