पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/८५

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१०१६ मिश्रबंधु-विनोद दत्त और दीनबंधु बड़े भारी लेखक और कवि थे । रमेशचंद्रदत्त ने भी अच्छे ग्रंथ रचे । अाजकल रवींद्रनाथ टैगोर बहुत बड़े कवि हैं, और उनके भाई द्विजेंद्रनाथ तथा यतींद्रनाथ परमोत्कृष्ट गद्य लेखक तथा नाटक-रचयिता हैं । बंगलाने वर्तमान उन्नत विषयों में बड़ी अच्छी उन्नति कर ली है। गुजराती एवं मराठी भाषाएँ भी उन्नत दशा में हैं । अस्तु । चंद के समय से उन्नति करते-करते इतने दिनों में हिंदी ने वह उत्कर्ष प्राप्त कर लिया था कि जिसके सहारे अन्य भाषाओं की अपेक्षा उसके काव्यांग इतने दृढ़सर हैं कि प्रायः उन सभों को इसके सामने सिर झुकाना पड़ता है। पर नवीन उपयोगी विषयों की अब तक कुछ भीसंतोषदायक उन्नति नहीं हो पाई थी। इस परिवर्तन-काल में अनेक लेखकों का ध्यान इस ओर आकर्पित हुश्रा, और विविध विषयों पर लेखनी चंचल करने की प्रथा पड़ने लगी। यों तो आजदिन तक अन्य भाषाओं को देखते हिंदी में इस विभाग की न्यूनता अगत्या स्वीकार करनी ही पड़ती है। पर जोप्रथा परिवर्तन-काल के कतिपय विचारशील हिंदी हितैषियों ने चलाई, उस पर क्रमशः उन्नति होती ही आई है। उत्तरालंकृत काल में कथा-प्रासंगिका ग्रंथों के लिखने की रीति प्रायः जैसी-की-तैसी जोरों पर रही थी। पर परिवर्तन-काल में उसका कुछ हास हो चला । शृंगार रस एवं रीति-ग्रंथों का प्राधान्य भी अब घटने लगा, पर उसी के साथ काव्योत्कर्ष में भी विशेष न्यूनता श्रा गई, और ठाकुर, दूलह, सूदन, बोधा, रामचंद्र, सीतल, थान, बेनी- प्रवीन और परताप के जोड़वाले प्रायः कोई भी कवि इस परिवर्तन- काल में दृष्टिगोचर नहीं होते । इतना ही नहीं, बरन् यों कहना चाहिए कि लेखराज, ललितकिशोरी, पजनेस आदि को छोड़ प्रायः कोई भी वास्तव में बढ़िया कवि इस समय में न हुआ। इसी के साथ इतना अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि यह परिवर्तन-काल केवल ३६ वर्ष का है और उत्तरालंकृत काल प्रायः एक सौ वर्ष पर विस्तृत है।