पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/५८

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अज्ञात-कालिक प्रकरण म नाम-(१५८८ ) विष्णुस्वामी बालकृष्णजी। ग्रंथ---अजितोदय-भाषा । नाम-(१५८९ ) बिसंभर । नाम-(१५९६ ) विहारीलाल । ग्रंथ-सतसई पुस्तक खंडित है। केवल नखशिख वर्णन का भाग उपलब्ध है। विवरण-आप जाति के खरे कायस्थ हैं। आपके पिता का नाम मोहनलाल है। आपके वंश-नायक लाहरजी, शाहजहाँ के दरबार में दीवान थे। उदाहरण- लै सुमना सुत चीकनी, कार बार संवारि। मन बिछलन मन हरन नखि, गॅथी बेनी नारि ॥१॥ तव मुख अरु शशि में सखी, रह्यो एक ही चीन्ह ।। श्याम बिंदु दैकै तनिक, भलो इंदु सम कीन्ह ॥ २॥ भली करी घूघट अरी, लोपन गोपन काज।। चटक चौगुनो होत है, ढपे आँखते वाज ॥ ३ ॥ रवि शशि औ तव रूप को, तौल्यो तौलनहार । तू गंभीर जग में रही, उठिंगे श्रोछे भार ॥ ४ ॥ नहिं बचात चुमि जात हिय, अधिक चुभात सोहात। . बलि तव चितवन वान की, नई अनोखी बास ॥॥ नाम-१५८६ ) विहारीदास । ग्रंथ-राधाकृष्ण की रति। नाम-(११) विहारीलाल भट्ट । ग्रंथ-संगीतदर्पण । विवरण-दतियावासी। नाम-(१५९०) बिंदादत्त।