पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३५३

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१२८४ मिनबंधु-विनोद जलदान की वृष्टि भई चहुँघा महिमंडल को दुख दूरि गयो । खल पास जवास नसी छिन मैं बक ध्यानिन बास अकास लयो। दुज दादुर बेद रौं सुख सों मन साल बिहाय बिसाल भयो। पिक मागध गान करै जस को ऋतु पावस के नृप नीति मयो ॥६॥ (२३९०) रामराव चिंचोलकर इनका संवत् १९६० के लगभग प्रायः ४० वर्ष की अवस्था में देहांत हो गया। आपकी प्रकृति बड़ी ही सौजन्यपूर्ण और सरल थी। श्राप पंडित माधवराव सप्रे के साथ छत्तीसगढ़-मित्र का संपादन करते थे। एक बार हमने मजाक में कहा कि इस पत्र को 'नाऊगढ़मित्र' भी कह सकते हैं, क्योंकि 'नाऊ' को छत्तीसा कहते हैं । इस पर आपने केवल इतना ही कहा कि "ऐसा!" और जरा भी बुरा न माना । आप छत्तीसगढ़-निवासी महाराष्ट्र ब्राह्मण थे। नाम-( २३९१) शिवसंपति सुजान भूमिहार, उदियोस्, जिला आजमगढ़। अंथ-(१) शतक, (२) शिक्षावली, (३) शिवसंपति- सर्वस्व, (४) नीतिशतक, (५) शिवसंपतिसंवाद, (६) नीतिचंद्रिका, (७) आर्यधर्मचंद्रिका, (८) वसंतचंद्रिका, (.) चौतालचंद्रिका, (१०) सभा- मोहिनी, (११) यौवनचंद्रिका, (१२) जौनपुर-जलप्रवाह- चिलाप, (१३) मनमोहिनी, (१४) पचरा-प्रकाश, (१५) भारतविलाप, (५६) प्रेमप्रकाश, (१७) ब्रजचंदबिलास, (८) प्रयागप्रपंच, (११) सावन- बिरहबिलाप, (२०) राधिका-उराहनो, (२१) ऋतु- विनोद, (२२) कजलीचंद्रिका, (२३) स्वर्णकुंवरि- विनय, (२४) शिवसंपतिविजय, (२६) शत्रुसंहार, (२६) शिवसंपति साठा, (२७) प्राणपियारी, (२८)