पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३५२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वर्तमान प्रकरण १२८३ एवं रईसों की प्रशंसा के आपने बहुत-से उत्कृष्ट छंद बनाए और अँडौला छंदों की भी अच्छी बहुतायत रक्खी । अंगार-रस एवं अन्य विपयों के भी स्फुट छंद आपने सैकड़ों रचे । आपके अश्लील, मँडोमा और प्रशंसा के छंद बहुत अच्छे बनते थे । हम आपको तोष की श्रेणी में समझते हैं। । उदाहरण- अँगरेजी पढ़ी जब सों तब सों हमरो तुमपै विसवास नहीं ; तुम हो कि नहीं यह सोचो करें परमान मिलै परकास नहीं। बिनु जाने न होत सनेह मिसाल सनेह बिना अभिलास नहीं । यहि कारन ते हमको सिवनी तरिबे की रही कछु पास नहीं ॥१॥ जीव बधै न हरै परसंपति लोगन सों सति वैन है नित; काल पै दान यथागति दै पर-तीय कथान मैं मौन रहै नित । तृष्णहि त्यागै बड़ेन नवै सब लोगन पै करना को गहै नित; शास्त्र समान गनै सिगरे सुखदा यह गैल बिसाल अहै नित ॥२॥ ,जो पर-तीय रम्यो न कवौं तौ कहा दुख झेलत गंग के मारन; जो भवसूल नसावत हौ तौ करयो केहि हेत त्रिसूल है धारन । देत जु माल बिसाल सदा तौ लपेटे रहो कत व्याल हजारन ; कामहि जारयो जु है सिव तौ गिरिजा अरधंग धरयो केहि कारन ॥३॥ श्रावत हैं परमात इतै चलि जात हैं रात उतै निज गोहैं; मोढिग जो पै रहैं कबहूँ सबहूँ उतही की लिए रहैं टोहैं।' सौहैं विसाल करें इत लाखन पै अभिलापि उतै मन मोहैं ; होति श्ररी हित हानि खरी तऊ लालची लोचन लाल को जोहैं ॥४॥ कैलिया कूकन लागी बिसाल पलास की आँच सों देह दह लगी; बौरन लागे रसाल सवै कल कंजन को अति भीर चहै लगी। जीव को लेन लगे पपिहा तिय मान श्री वात क्यों मोसों को लगी, अाजु इकत मिलै किन कंत सों बीर बसंत वयारि बहै लगी ॥५॥