पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३४८

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वर्तमान प्रकरण १२७६ चंचन जो सफरी फरकै मनु मंजु नसी कटि किकिनि डोरी; सेत विहंगनि की सुठि पंगति राजति सुंदर हार नौं गोरी। तीर के बृच्छ बिसाल नितंव सुमंद प्रवाह भई गति थोरी; . राजति या ऋतु मैं सरिता गजगामिनि कामिनि सी रसबोरी ।।। (२३८७ ) गौरीशंकर-हीराचंद ओझा रायबहादुर इन पंडितजी का जन्म संवत् १९२० में, सिरोही राज्यांतर्गत रोहिड़ा ग्राम में, हुआ था । आप सहस्र औदीच्य ब्राह्मण हैं । आपने संस्कृत तथा भाषा की अच्छी योग्यता प्राप्त की है, और थाप अँगरेजी भी जानते हैं। पुरातत्व अनुसंधान में आपको बड़ी रुचि है; इस विषय में श्राप परम प्रवीण हैं। ये अजमेर अजायब-घर के अध्यक्ष हैं। आपने प्राचीन लिपिमाला, कर्नल टाड का जीवन-चरित्र, सिरोही का इतिहास, टाड राजस्थान के अनुवाद पर टिप्पणियाँ और सोलंकियों का इतिहास-नामक राजपूताना का इतिहास-ग्रंथ रचे हैं। प्राचीन लिपिमाला के पढ़ने से प्राचीन लिपियों के जानने में योग्यता प्राप्त हो सकती है। पंडितनी ऐतिहासिक ग्रंथमाला-नामक एक पुस्तकावली प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें इतिहास-ग्रंथ छपते हैं। आप एक सुलेखक और परम सतोगुणी प्रकृति के मनुष्य हैं, और आपके प्रयत्नों से भाषा में इतिहास-विभाग के पूर्ण होने की आशा है। आप हिंदी-साहित्य- सम्मेलन से १२००) पुरस्कार पा चुके हैं। ( २३८८) विनायकराव (पंडित) आपका जन्म १६१२ में हुआ था । आप १००) मासिक पर होशंगाबाद के हेड मास्टर थे। अंत में २२०) के वेतन से आपने पेंशन पाई। आपने हिंदी की प्रायः २० पुस्तके रची; जो विशेषतया शिक्षा विभाग की हैं। आपने रामायण की विनायकी टीका की है, जो प्रशंसनीय है और कान्य-रचना भी की है।