पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३४१

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१२७२ मिश्रबंधु-विनोद प्रेम और प्रचुर प्रीति से किया है।" इनकी कविता अच्छी है। इनको गणना मधुसूदनदास की श्रेणी में की जाती है। उदाहरणार्थ दो छंद नीचे दिए जाते हैं- अविगत आनंदकंद, परम पुरुष परमात्मा ; सुमिरि सु परमानंद, गावत कछुह रि-जस बिमल ॥ १ ॥ भगत हृदय सुखदैन, प्रेम पूरि पावन परम; लहत श्रवन सुनि बैन, भववारिधि तारन तरन ॥२॥ ( २३७९) ज्वालाप्रसाद मिश्र इनका जन्म संवत् १९१६ में, मुरादाबाद में, हुश्रा था। ये महाशय संस्कृत तथा हिंदी के बहुत अच्छे विद्वान् थे और स्वतंत्र ग्रंथ तथा अनुवाद मिलाकर कितने ही ग्रंथ इन्होंने बनाए । भारतधर्म- महामंडल के ये उपदेशक थे और मंडल ने इन्हें विद्यावारिधि एवं महोपदेशक की उपाधियाँ प्रदान की थीं। हिंदी में ये महाशय बहुत उत्तमतापूर्वक धारा बाँधकर व्याख्यान देते थे और सारे भारत में घूम-घूमकर सनातनधर्म पर व्याख्यान देना इनका काम था। कई सभाओं में आर्य-समाजी पंडितों से इन्होंने शास्त्रार्थ में जय पाई। आपने शुक्ल यजुर्वेद पर 'मिश्रभाष्य' नामक एक विद्वत्तापूर्ण टीका रची। इसके अतिरिक्त तीस उत्कृष्ट संस्कृत ग्रंथों का आपने भाषा- नुवाद भी किया । तुलसी-कृत रामायण एवं बिहारी-सतसई की टीकाएँ भी पंडितजी की प्रसिद्ध हैं । इनके अतिरिक्त दयानंदतिमिरभास्कर, जातिनिर्णय, अष्टादशपुराण, सीतावनवास नाटक, भक्तमाल आदि कई अच्छी पुस्तकें भी इन्होंने लिखीं। इनकी विद्वत्ता तथा लेखनशक्ति बड़ी प्रशंसनीय है । कुछ दिन हुए आपका स्वर्गवास हो गया। (२३८०) माननीय मदनमोहन मालवीय __ इन महानुभाव का जन्म संवत् १९१६ में, प्रयाग में, हुआ था।