पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३४०

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वर्तमान प्रकरण बानी बसै सुकवि भानन मैं सयानी ; मानी जु जाय यह बात कही परानी। तो सत्य-सत्य कविता कविरत तेरी, वाही त्रिलोकपरिपूजित देवि प्रेरी ॥५॥ तेजोनिधान रवि-विव सुदीति-धारी ; श्राह्लादकारक शशी निशिताप हारी। जो थे प्रकाशमय पिंड न ये बनाए । तो व्योम बीच कब ये किस भाँति पाए ? ॥२॥ समालोचना लिखने में द्विवेदीजी ने दोषों का वर्णन खूब किया है। आपकी रचनाओं में अनुवाद ग्रंथों की प्रचुरता है। (२३७७) नंदकिशोर शुक्ल ये टेढ़ा, जिला उन्नाव के निवासी हैं । आपने राजतरंगिणी नामक काश्मीर के प्रसिद्ध इतिहास-ग्रंथ के प्रथम भाग का हिंदी-गद्य में अनुवाद किया है। इनके और भी कई ग्रंथ अनुवादित तथा रचित हैं । आपकी अवस्था ६४ साल की होगी। श्रापके ग्रंथों में सनातनधर्म वा दयानंदी मर्म, उपनिषद् का उपदेश और भारतभक्ति प्रधान हैं। आपने कुल १३ ग्रंथ रचे । आप भारतधर्ममहामंडल के महोपदेशक हैं। (२३७८) रनकुँवरि बीबी ये महाशया मुर्शिदाबाद के जगत्सेठ धराने में जन्मी थी और इन्होंने वृद्धावस्था तक बहुत सुखपूर्वक पुत्र-पौत्रों में अपना समय व्यतीत किया। बाबू शिवप्रसाद सितारहिंद इनके पौत्र थे। ये संस्कृत और फ़ारसी की अच्छी ज्ञाता थीं और योगाभ्यास में भी इन्होंने श्रम किया था। इनका आचरण बहुत प्रशंसनीय और अनुकर- णीय था। इन्होंने संवत् १६४४ में प्रेमरत्न-नामक ग्रंथ बनाकर उसमें "श्रीकृष्ण ब्रजचंद आनंदकंद की लीलाओं का उल्लेख परम