पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३३४

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वर्तमान प्रकरण १२६५ जीवनी, (७) बाबू साहबप्रसादसिंह की जीवनी, (८) श्रीसीता- रामशरण भगवानप्रसाद की जीवनी, (१) बाबा सुमेरसिंह साहबजादे की जीवनी, (१०)गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी । प्राप उर्दू की भी शायरी करते और समस्यापूर्ति भी मंडलों और समाजों में भेजते हैं। . . (२३६९) उमादत्तजी ( उपनाम दत्त) ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण दरबार अलवर के कवियों में हैं । श्रापकी अवस्था इस समय लगभग ६० साल को होगी। इनकी कविता बड़ी ही सरस तथा सोहावनी होती है। उदाहरण- गेह ते निकसि बैठि बैचत सुसनहार, । देह-दुति देखि दीह दामिनि लजा करै । मदन उमंग नव जोबन तरंग उठे, बसन सुरंग अंग भूषन सजा करै । दत्त कवि कहै प्रेम पालत प्रवीनन सों, बोलत अमोल बैन बीन-सी बजा फरै ; गजब गुजारत बजार मैं नचाय नैन, मंजुल मजेज भरी मालिनि मजा करै ॥१॥ मुकि जाती सौत सब दीरध दिमाक देखि, रसिक बिलोकि होत बिकल निहारे मैं; झरत न मारे थके गाहरू बिचारे जरी, - जंत्र-मंत्र विविध प्रकार उपचारे में। दत्त कवि कहै मन धरत न धीर अजौं, - कैसे बचें कुटिल कटाच्छ फुसकारे मैं ; विषधर भारे नाग कारे नैन कामिनि के, काटि छिपि जात हाय पलक पिटारे मैं ॥२॥