पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३३१

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१२६२ मिश्रबंधु-विनोद को अस तुम बिन दूसर जेहिका गोबर लगे पबित्तर होय ॥ ४ ॥ आगे रहे गनिका गज गीध सुतौ अब कोऊ दिखात नहीं हैं; पाप-परायन ताप भरें परताप समान न पान कहीं हैं। हे सुख-दायक प्रेमनिधे जग यों तौ भले औ बुरे सबहीं हैं ; दीनदयाल श्रौ दीन प्रभो तुमसे तुमही हमसे हमहीं हैं ॥ १ ॥ सिर चोटी [धावती फूलन सों मेहँदी रचि हाथन पावन मैं ; परताप त्यों चूनरी सूही सजी मनमोहनी हावन भावन मैं । निसि योस वितावतीं पीतम के सँग झूलन मैं श्रौ झुलावन मैं ; उनही को सुहावन लागत है धुरवान की धावन सावन मैं ॥ ६॥ अनुवादित ग्रंथ-(१) राजसिंह, (२)इंदिरा, (३) राधारानी, (४) युगलांगुरीय (बंकिमचंद्र के बँगला उपन्यासों से), (५) चरिताष्टक, (६) पंचामृत, (७) नीतिरतावली, (८) कथामाला, (६)संगीत शाकुंतल, (१०) वर्ण- परिचय, (११)सेनवंश, (१३) सूबे बंगाल का भूगोल। रचित ग्रंथ-(१) कलिकौतुक (रूपक), (२) कलिप्रभाव (नाटक), (३) हठी हमीर (नाटक), (४)गोसंकट (नाटक), (२) जुआरी खुवारी (प्रहसन), (६) प्रेमपुष्पावली, (७)मन की लहर, (८) श्रृंगारविलास, (६) दंगलखंड (आल्हा), (१०) लोकोक्तिशतक, (११) तृप्यताम्, (२) ब्रैडला-स्वागत, (१३) भारतदुर्दशा (रूपक), (१४) शैव-सर्वस्व, (१५) मानस विनोद, (१६) सौंदर्यमयी । संगृहीत ग्रंथ-(१) रसखानशतक, (२) प्रतापसंग्रह। उर्दू का ग्रंथ-(१)दीवान बिरहमन ।