पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३३०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वर्तमान प्रकरण १२६३ कुटिल काल के वश हो गए । तृप्यताम् में इन्होंने १० छंदों में तर्पण के कुल नामों पर एक-एक छंद देशहितैपिता का लिखा था। इनके असमय स्वर्गवास से हिंदी का बड़ा अपकार हुा । ये महाशय ब्रजभाषा के प्रेमी थे, और खड़ी बोली की कविता को आदर नहीं देते थे। इनकी गणना तोप कधि की श्रेणी में है। अपने समाचार-पत्र के ग्राहकों के प्रति कविता- श्राउ मास बीते जजमान, अब सौ करौ दछिना दान । - हर गंगा। जो तुम चाहो बहुत खिझाय, यह कौनिउ भलमंसी श्राय ! हर गंगा ॥१॥ xx लोगन को सुख चैन मैं राखति लच्छिमी लौ सुभ लच्छन खानी; शत्रु विनाशत देरन लावति कालिका-सी पनि काल-निसानी। विद्या बढ़ावति चारिहु 'ओर सरस्वति के समतूल सयानी; एकहि रूप मैं राजै त्रिदेवि है जैति जै श्रीविकटोरिया रानी ॥२॥ x अरे बुढ़ापा तोहरे मारे अब तो हम नकन्याय गयन; करत धरत कछु बनत नाही, कहाँ जान श्री कैस करन । दादी नाक याक मा मिलिगै बिन दाँतन मुँह अस पोपलान; दविही पर बहि-बहि श्रावति है कबौ तमाखू जो फाँकन । बार . पाकिगे रीरौ झुकिंगै मूडौ सासुर हालन लाग; हाथ पाँय कुछ रहे न श्रापनि केहि के आगे दुखु ावन ॥३॥ गैया माता तुमका. सुमिरौं कीरति सब ते बड़ी. तुम्हारि ; करौ पालना तुम लरिकन के पुरिखन बैवरनी देउ तारि। . तुम्हरे दूध दही की, महिमा जानै देव, पितर सब कोय ;