पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३२८

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वर्तमान प्रकरण १२५६ स्फुट भजन बनाए हैं। इनके बहुत-से पद "प्रताप'वरि रतावनी"- नामक पुस्तक में छपे हैं। इनकी रचना बहुत सरस और भक्तिपूर्ण है, और वह सुकवियों कृत कविता की समानता करती है। उदाहरणार्थ इनके दो पद उद्धत किए जाते हैं- ___चारी थारा मुखड़ा री श्याम सुजान । (टेक) मंद-मंद मुख हास बिराजै कोटिन काम ललान; अनियारी अंखियाँ रसभीनी बाँकी भौंह कमान । . दाडिम दसन अधर अरुनारे बचन सुधा सुख खान ; जामसुता प्रभुसों कर जोरे हौ मम जीवन प्रान । ___ दरस मोंहि देहु चतुरभुज श्याम । (टेक) करि किरपा करुनानिधि मोरे सफल करौ सब काम । पाव पलक बिसरूं नहिं तुमको याद करूँ निस नाम ; जामसुता की यही बीनती श्रानि करौ उर धाम । इनका कविताकाल १६४३ जान पड़ता है। (२३६३ ) आर्यमुनिजी इनका जन्म संवत् १९१६ में हुआ था। श्राप दयानंद-ऐंग्लो- वैदिक कॉलेज, लाहौर के एक सुयोग्य अध्यापक हैं । वेदांतार्य- भाष्य, गीताप्रदीप और न्यायार्य-भाष्य ग्रंथ आपके निर्मित किए (२३६४ ) महेश राना शीतलावल्शवहादुरसिंह उपनाम महेश बस्ती के राजा थे । ये महाशय कवियों के बड़े आश्रयदाता थे और कवि लछिराम का इनके यहाँ बड़ा सत्कार था। इनका शृंगार-शतक नामक एक ग्रंथ हमारे देखने में आया है। ये संवत् १९४१ के लगभग तक जीवित थे । इनकी कविता अच्छी हुई है । हम इनको साधारण . श्रेणी में रखते हैं।