पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३२०

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वर्तमान प्रकरण १२५१ सर्विस पास करके भारत में १६५५ पर्यंत रहे । इनको हिंदी से बड़ा प्रगाढ़ प्रेम था, और सदैव इनके द्वारा हिंदी का उपकार होता रहा है। इन्होंने मैथिली भाषा का व्याकरण, विहारी-कृषक-जीवन, और विहारी बोलियों का व्याकरण-नामक ग्रंथ बनाए, तथा विहारी-सतसई, पद्मावती, भाषाभूषण, तुलसी-कृत रामायण आदि ग्रंथों को संपादित किया । इन ग्रंथों के अतिरिक्त अापने माडनं वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान-नामक इतिहास-ग्रंथ शिवसिंहसरोज एवं अन्य ग्रंथों के आधार पर भाषा-साहित्य के विपय बनाया। इसमें प्रायः सब बड़े कवियों के नाम आ गए हैं। अाजकल भी ये महाशय भाषाओं की खोज का ग्रंथ लिग्वस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया, कई भागों में लिखी है, जो पूरी प्रकाशित हो चुकी है। इसमें इन्होंने हिंदी की बड़ी प्रशंसा की है। अब ये महाशय विनायव में रहकर पेंशन पाते हैं । आपका हिंदी-प्रेम एवं श्रम सर्वथा सराहनीय है। नाम-(२३४८) गदाधरजी ब्राह्मणं, बाँसी। अंथ-(१) घृतसुधातरंगिणी (पद्य, ६६ पृ० १६१६), (२) देवदर्शनस्तोत्र (पद्य, १० पृ० १६५८), (३) काव्यकल्पद्रुम (गध, १२ पृ. १९५६), (४) कामांकुश- मदतरंगिणी (गद्य, ४२ पृ० १६५९), (५) बदरीनाथ- माहात्म्य (पद्य, २२ पृ. १९५६), (६) गजशाला- चिकित्सा (गद्य, १२ पृ० १६६०), (७) वैद्यनाथ- माहाल्य (पद्य, १४ पृ. १६६०),(८) अश्वचिकित्सा (पद्य, ३३८ पृ० १९६१), () हरिहरमहात्म्य (पद्य, १० पृ० १९६२), (१०) साधुपचीसी (पद्य, १० पृ. १९६३), (११) नारीचिकित्सा (गद्य, १२८ पृ. १९६२), (१२) जगनाथमाहात्म्य, (१३) नयनगद- तिमिरभास्कर, (१४) तैल-सुधातरंगिणी, (१५) तैन-