पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३१८

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वर्तमान प्रकरण १२४३ जिनसों सँभरि सकत नहिं नन की धोती ढीलीढाली; देश-प्रबंध करेंगे वे यह कैसी खामखयाली। दास वृत्ति की चाह चहूँ दिसि चारहु बरन बढ़ानी; करत खुसामद झूठ प्रसंसा मानहु बने ढफाली ॥२॥ इनका गद्य और पद्य पर अच्छा अधिकार था, और ये हिंदी के बड़े लेखकों में से थे । इनको हिंदी का सदैव से अच्छा शौक था। थोड़े दिन हुए इनका शरीर-पात हो गया। नाम-(२३४४) लक्ष्मीनारायणसिंह कायस्थ, सिकंदरावाद, जिला बुलंदशहर। • ग्रंथ तैलंगबोध। रचनाकाल-१९३७ । विवरण-ये महाशय हैदराबाद में नौकर थे। इन्होंने खालकवारी की तरह तैलंग भाषा के शब्दों का कोप बनाया है, जिसमें तैलंगी शब्दों के अर्थ हिंदी में कहे हैं। यह पुस्तक मतवा निज़ामी हैदरावाद में छपी है। नाम-(२३४५) ईश्वरीसिंह चौहान (ईश्वर), किसुनपुर, राज्य अलवर। रचना-स्फुट काव्य। जन्मकाल-१९१३ रचनाकाल-११३८ । विवरण इनके बड़े भाई माधव भी अच्छे कवि थे और आपकी भी कविता सरस होती है। उदाहरण देखिए- कवहूँ नहिं साधी समाधि की रीति न ब्रह्म की जीव मैं जोति जगी; कबहूँ परजक मैं अंक न लीनी मयंकमुखी रस प्रेम पगी। कवि ईसुर प्यारी की बातन हूँ कबहूँ नहिं चित्त की चाह ठंगी;