पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३१७

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१२४८ मिश्रबंधु-विनोद के साथियों में थे और भाषा के बड़े प्राचीन लेखक तथा कवि थे । एक बार हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के सभापति नियत किए गए थे। आपके रचित निम्नलिखित ग्रंथ हैं- (१) भारतसौभाग्य नाटक, (२) प्रयाग-रामागमन नाटक, (३) हार्दिकहर्षादर्श काव्य, (४) भारतबधाई, (१) आर्याभिनंदन, (६) मंगलाश, (७) कलम की कारीगरी, (८) शुभसम्मिलन काव्य, (१) श्रानंदनरुणोदय, (१०) युगलमंगल स्तोत्र, (११) वर्षाविदुगान, (१२) वसंत-मकरंद-बिंदु, (१३) कजली-कादंबिनी, (१४) वारांगना- रहस्य महानाटक, (१५) संगीतसुधासरोवर, (१६)पीयूपवर्षा, (१७) आनंदबधाई, (१८)पितरप्रलाप, (११) कलिकालतर्पण, (२०) मन की मौज, (२१) युवराजाशिष, (२२) स्वभावबिंदुसौंदर्य गद्यकाव्य, (२३) शोकाचबिंदु पद्य, (२४) विधवाविपत्तिवर्षा गद्य, (२५) भारतभाग्योदय काव्य, (२६) कांता कामिनी उपन्यास, (२७) वृद्धविलाप प्रहसन, (२८) आत्मोल्लास काव्य, (२६) दुर्दशा दत्तापुर। पटरानी नृप सिंधु की निपथागामिनी नाम: तुहिं भगवति भागीरथी बारहिं वार प्रनाम । बारहिं बार प्रनाम जननि सब सुख की दाइनि; पूरनि भक्तन के मनोरथनि सहज सुभाइनि । ब्रह्मलोकहू लौं करि निज अधिकार समानी; पूरौ मम मन-श्रास सिंधु नृप की पटरानी ॥ १ ॥ कौन भरोसे अब इत रहिए कुमति आय घर धाली; फूट्यो फूट बैर फलि फैल्यो बिधि की कठिन कुचाली । चलिए वेगि इहाँ ते श्राली । जिन कर नाँहि छड़ी ते करिहैं कहा करद करवाली; छमा-कवच-धारी ये बिहसत खाय लात औ गाली।