पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/३१६

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वर्तमान प्रकरण १२४७ लेख-प्रणाली और निज वृत्तांत इनके ग्रंथों में प्रधान हैं। विहारी- विहार में विहारी-सतसई के बोहों पर कुंडलियाँ लगाई गई हैं। इसकी रचना प्रशंसनीय होने पर भी कुछ शिथिल है। गद्यकाव्य- मीमांसा बहुत ही विद्वत्तापूर्ण पुस्तक है। कविता की दृष्टि से इनकी गणना साधारण श्रेणी में की जा सकती है। इनकी अकालमृत्यु से हिंदी में गवेषणा-विभाग की बड़ी क्षति हुई। इनकी कविता का महत्व जैसा इनके गद्य से है, वैसा पध से नहीं। __ उदाहरण- - "अब गध-विभाग की परीक्षा की जाती है। यहाँ साहित्यदर्पण- कार के कथनानुसार तीन गद्य तो असमास, अल्पसमास, दीर्घ- समास हैं, और चौथा वृत्तगंधि है। परंतु यह विचारना है कि प्रथम ही सीन गधों से सरस्वती का सारा गधभंडार भर जाता है, फिर कौन-सा स्थान शेष रह जाता है, जहाँ वृत्तगंधि गध स्थिर हो!! हाँ, वृत्तगंधि गद्य जब होगा, तब उन्हीं तीन में से कोई-सा होगा। इस- लिये इसे प्रविभाग कहें तो कहें, पर गद्य-विभाग में सो रख ही नहीं सकते।" परनिंदा उगपनो कबहुँ नहि चोरी करिहैं । जंतुन को दै पीर कबहुँ नहिं जीवन हरिहैं । मिथ्या अप्रिय बचन नाहि काहू सन कहिहैं; पर उपकारन हेत सवै विधि सब दुख सहिहैं। (२३४३) बदरीनारायण चौधरी (प्रेमधन) आपके पिता का नाम गुरचरणलाल था । ये पहले मिर्जापुर में रहते थे, परंतु पीछे विशेषतया शीतलगंज, जिला गोंडा में रहते थे। इनका जन्म संवत् १६१२ भाद्रकृष्ण ६ को मिर्जापुर में हुआ। ये सरयूपारीण ब्राह्मण उपाध्याय भरद्वाजगोत्री थे। श्राप बहुत दिन तक नागरीनीरद तथा आनंदकादंबिनी-नामक मासिक पत्र निकालते रहे । ये भारतेंदुजी