पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२८७

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१२१८ मिश्रबंधु-विनोद आप बहुत दिनों तक निकालते रहे। आपने नेपोलियन का जीवन- चरित्र लिखा है। आप हिंदी के एक बड़े अच्छे व्याख्यानदाता और बड़े ही उत्साही पुरुष थे। चतुर्थ हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के श्राप सभापति हुए थे। श्रद्धानंद के नाम से आप संन्यासी हो गए थे। शुद्धि-संस्कार में आपने बड़ा सराहनीय प्रयत्न किया था। देश के बड़े भारी नेताओं में से आप एक थे। सन् १६२६ ई० में एक मुसलमान ने आप को गोली से मार डाला। नाम-( २१६८ ) रणजोरसिंह महाराजा। ग्रंथ--(१) उष्ट्रशालिहोत्र, (२) श्वानचिकित्सा, (३) राजशालिहोत्र, (४) विहंगविनोद, (५) मृगयाविनोद, (६) बरी भेड़ पालन, (७) बनिजप्रकाश, (८) उपवनविनोद, (१) मखजनी हिंदो, (१०) कायदे जहर, (११) गृहविद्या, (१२) किताब जर्राही, (१३) वैद्यप्रभाकर, (१४) संतानशिक्षा, (११) संगीत- संग्रह, (१६) दायागरी। [प्र. ०शि० ] रचनाकाल---१९२६ । विवरण- आप अजयगढ़के महाराजाथे। श्रापका जन्म संवत् १६०५ में हुअा तथा संवत् १६१६ में आप गद्दी पर बैठे। (२१६६ ) शिवसिंह सेंगर ये महाशय मौज़ा काँथा ज़िला उन्नाव के ज़िमींदार रंजीतसिंह के पुन्न और बखतावरसिंह के पौत्र थे। इनका जन्म संवत् १८६० में हुआ था और ४५ बरस की अवस्था में इनका स्वर्गवास हुआ। श्राप पुलीस में इंस्पेक्टर थे। इनको काव्य का बड़ा शौक था और इन्होंने भाषा, संस्कृत और फारसी का अच्छा पुस्तकालय संगृहीत किया। था, जो इनके अपुत्र मरने के कारण अब इनके भतीजे नौनिहालसिंह के अधिकार में है। हमने इसे वहाँ जाकर देखा है।