पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२८६

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वर्तमान प्रकरण पेशकार हो गए। जिस पद पर ये मृत्यु पर्यत रहे। इनका स्वर्गवास ४ जनवरी संवत् १९६१ में, ४७ वर्ष की अवस्था में, हो गया । इन्होंने यावजीवन खड़ी-बोली का पत्र में प्रचार करने और छंदों से प्रजभाषा उठा देने का प्रयत्न किया। इस विषय में इन्हें इतना उत्साह था कि कुछ कहा नहीं जाता । खड़ी-बोली के आंदोलन पर एक भारी लेख भी छपवाकर इन्होंने उसे बेदाम वितरण किया था। उसकी एक प्रति इन्होंने अपने हाथ से हमें भी काशी में सभा के गृहप्रवेशोत्सव में दी थी। जिस लेखक से ये मिलते थे उससे खड़ी-बोली के विषय में भी बातचीत अवश्य करते थे। खड़ी-बोली के प्रचार को ही ये अपना जीवनोद्देश्य समझते थे। ऐसे उत्साही पुरुष बहुत कम देखने में आते हैं। इस विषय पर आपने इंगलैंड में भी एक लेख छपवाया था। संवत् १९३४ में इन्होंने एक हिंदी- व्याकरण प्रकाशित किया। इनके अकाल-स्वर्गवास से खड़ी-बोली के आंदोलन को बड़ी क्षति पहुँची। इस आंदोलन को पूर्ण बल के साथ पहलेपहल इन्हीं ने उठाया। आपने इसमें इतना उत्साह दिखाया कि आपको देखते ही बड़ी-बोली की याद आ जाती थी। (२१९८) मुंशीराम महात्मा इनका जन्म संवत् १६१५ में हुआ था। आप बड़े ही धर्मात्मा पुरुष थे। श्राप गुरुकुल काँगड़ी के अध्यक्ष थे। आपने भारी आय की वकालत छोड़कर फकीरी को अपनाया और भारत की प्राचीन पठन-पाठन-शैली का सजीव उदाहरण गुरुकुल स्थापित किया। वहाँ महात्मा बनाए जाने को बालक पढ़ाए जाते हैं। श्राप हिंदी के भी लेखक थे। पं० लेखराम का जीवनचरित्र, आदिम सत्यार्थ- प्रकाश एवं धर्म-विषयक कई छोटे-छोटे निबध और अपना जीवन : वृतांत लिखे हैं। श्रापका जीवन धन्य था । आर्य-समान के एक भारी दल के श्राप नेता थे। सद्धर्मप्रचारक नामक एक भारी पत्र भी