पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२८५

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१२१६ मिनबंधु-विनोद छंदानुवाद किया । ये महाशय कवि टीकाराम के पुत्र जाति के ब्राह्मण थे। आपने संस्कृत-मिश्रित भाषा को श्रादर दिया है, इस कारण उसमें मिलित वर्ण बहुत आ जाने से पोज की प्रधानता और प्रसाद एवं माधुर्य की कमी हो गई है। इन्होंने अपने छंदों के चतुर्थ पदों में कहीं-कहीं पर हाँ' शब्द बिलकुल बेकार लिख दिए हैं, जो न तो अर्थ का समर्थन करते हैं और न छंद का । उन्हें छोड़कर पढ़ने से छंद और अर्थ दोनों पूरे होते हैं । तो भी इस ग्रंथ की कविता बहुत जोरदार है और इसमें प्रभावशाली छंद बहुत पाए जाते हैं। नाटक में १३२ पृष्ठ हैं और सब प्रकार के छंद रामचंद्रिका एवं गुमान-कृत नैषध की भाँति रक्खे गए हैं। ग्रंथ बहुत सराहनीय बना है। इस कवि ने अनुप्रास को भी आदर दिया है। हम गोविंदजी को छन कवि की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरण- फुल्लित गल्ल करें फुतकार प्रफुल्ल नसापुट कोटर आयो; ओघ अहंकृत पावक पुंज हलाहल घूमि तितै प्रगटायो। अंध समान किए सब लोकन अंबर लौं छिति छोरन छायो; लोयन लाल कराल किए ततकाल महा बिकराल लखायो। निखिल नरेंद्र निकाय कुमुद जिमि जानिए; तिनको मुद्रित करन मिहिर मोहि मानिए। . कार्तवीर्य प्रति कढ़े यथा मम बोल हैं; पर हाँ ! सो सुनि लीजै राम श्रवण जुग खोल हैं। इस ग्रंथ में राम के राज्याभिषेक तक का वर्णन है। (२१९७) अयोध्याप्रसाद खत्री - ये महाशय बलिया के रहनेवाले थे, पर इनकी बाल्यावस्था से ही इनके पिता मुजफ्फरपूर (बिहार) में रहने लगे। कुछ दिन इन्होंने अध्यापक का काम किया और पीछे से कलेक्टर के