पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२८३

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१२१४ मिश्रबंधु-विनोद (७) करुणाष्टक, (८) महावीराष्टक, (१) नीतिअष्टक, (१०) पटउपदेश, (१३) ध्यानपटपदी, (१२) कृष्णशत, ( १३ ) विनयशत, ( १४ ) गुरु- महिमा, (१५) अश्वचालीसा, (१६) संप्रदायसार, (७) उत्सवप्रकाश, (१८) पदपमावली।। विवरण-सं० १९७० में वर्तमान थे। श्राप प्रसिद्ध गोस्वामी. गदाधरलालजी के वंश में हैं। उस समय आपकी अवस्था लगभग ६५ साल की होगी। इनकी कविता प्रशंसनीय होती है। सरद सरोज सी सुखात दिन द्वैक होते, हेरि-हेरि हिय मैं हिमंत सरसावैरी; कहै जगदीस बात सिसिर सुहात नाहि, सुमति बसंत सुखकंत विसरावैरी। श्रीखम बिखम ताप तन को तपाय तिय, बोजत न बैन मन मैन मुरझावैरी; पावस पयान पिय सुनिकै सयानि आज, अंबुज अनूप दग बंद बरसावैरी ॥ १ ॥ कमल नैन कर कमल कमल पद कमल कमल कर ; अमल चंद मुख चंद विकट सिर चंद चंद धर। मधुर मंद मुसक्यानि कान कुंडल अति सोभित ; बसन पीत मनि माल माल गुंजन मन लोभित । जगदीस भौंह अलक अधर मंद-मंद मुरली बजत , ब्रजचंद मंद अलोकि अति आवत लखि मनमथ लजत ॥२॥ (२१९३) कार्तिकप्रसाद खत्री इनका जन्म संवत् १९०८ में कलकत्ते में हुआ था। इनके माता-पिता का देहांत इनकी बाल्यावस्था में हो गया, सो इनका