पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२८२

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वर्तमान प्रकरण १२३ के मित्र थे। थोड़ी अँगरेजी पढ़कर इन्होंने देशी रियासतों में नौकरी की और अंत में पेंशन पाकर मथुरा में रहते थे । इन्होंने हिंदी पर सदैव विशेष रुचि रक्खी और उसमें १२ पुस्तकें बनाई । पुरातत्व पर इनकी बहुत अधिक रुचि रही है, और चंद-कृत पृथ्वीराज रासो को संपादित करके ये प्रकाशित कराते थे। जिसे पीछे से सभा ने पूर्ण कराया । रासो के विषय में इनका प्रमाण माना जाता था। थोड़े दिन हुए इनका शरीर-पात हो गया। (२१९१) राधाचरण गोस्वामी इनका जन्म संवत् ११११ में, वृदावन में, हुआ था। इन्हें हिंदी तथा संस्कृत में अच्छी योग्यता थी और थोड़ी-सी अँगरेज़ी भी इन्होंने पढ़ी थी। ये महाशय वल्लभीय संप्रदाय के गोस्वामी थे और हिंदी पर इनका सदैव भारी प्रेम रहा । संवत् १९३२ में आपने कविकुल- कौमुदी-नामक एक सभा स्थापित की । इन्होंने गध के सैकड़ों उत्तम लेख लिखे और भारतेंदु-नामक एक मासिक पत्र भी निकाला था, पर वह बंद हो गया। ये महाशय वृदावन के एक प्रतिष्ठित रईस थे। सरोजिनी नामक इनका एक नाटक भी उत्तम है। आपने और भी कई छोटी-छोटी पुस्तकें लिखी हैं, विधवाविपत्ति, २ विरजा, ३ जावित्री, ४ यमलोक की यात्रा, ५ स्वर्गयात्रा, ६ मृण्मयी, ७ कल्पलता, बालविधवा इत्यादि पुस्तकें श्रापकी रची है । आप बड़े सज्जन और योग्य पुरुष थे । आपके साथ बैठने में बड़ी प्रसन्नता होती थी। खेद है, आपका भी देहांत हो गया। नाम--(२१९२) जगदीशलालजी गोस्वामी (जगदीश), अंध-(१)वजविनोद नायिकाभेद, (२) साहित्य-सार, (३) प्रस्तारप्रकाश पिगंल, (४) नृपरामपचीसी, (५) लाजविहारीप्रागट्यपचीसी, (६) लालबिहारीअष्टक,