पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२८०

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१२११ वर्तमान प्रकरण पड़ता है कि ये नंदराम दूसरे थे, क्योंकि शृंगारदर्पण के रचयिता नंदराम ने शांतरस के अच्छे छंद नहीं कहे हैं। हम इनको तोप कधि की श्रेणी में रक्खो। मोर किरीट मनोहर कुंडल मंजु कपोलन पै अलकाली; पीत पटी लपटो तन साँवरे भाल पटीर की रेख रसाली। त्यों नंदरामजू बेनु बजावत भाजु लखे बन मैं बनमाली; नैन उधारिबे को मन होत न मोहन रूप निहारि कै पानी। (२१८७ ) लक्ष्मीशंकर मिश्र, एम० ए० रायबहादुर ये महाशय सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनका जन्म संवत् १९०६ में हुश्रा था और संवत् १९६३ में इनका स्वर्गवास हुा । पहले ये बना रस कॉलेज में गणित के अध्यापक थे, पर संवत् १६४२ में सरकार ने इन्हें शिक्षा-विभाग में इंस्पेक्टर नियत कर दिया। इन्होंने गणित- कौमुदी-नामक एक पुस्तक हिंदी में बनाई और बहुत दिन तकाकाशी- पत्रिकाचलाई। बहुत दिनों तक ये नागरीप्रचारिणी सभा के सभा- पति रहे और यथाशक्ति सदैव हिंदी की उन्नति करते रहे। बहुतेरी पाठ्य-पुस्तकें भी इन्होंने शिक्षा विभाग के लिये संपादित की। (२१८८) रामद्विज आपका नाम रामचंद्र था और आप कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। आपका जन्म संवत् १९०७ में हुआ था । श्राप हाई स्कूल अनवर के अध्या- पक थे। श्रापकी कविता सरस, अनुप्रास-पूर्ण और श्रेष्ठ होती थी। इनके जानकीमंगल-नामक ग्रंथ से नीचे कुछ उदाहरण दिए जाते हैं। उदाहरण-- राम हिय सिय मेली जैमाल । ( टेक) मानहु धन बिच रच्यो चंचला सुरपतिचाप विशाल । 'लखिकै संकल भूप तन झरसे ज्यों जवाल जलकाल; कहि दुन राम बाम सुर गावत जनु कल कंठन जाल ॥१॥