पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२७८

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१२.8 वर्तमान प्रकरण . जीवन सुकवि प्रेम अंतर विचार कहै, आपु महरान सीस कीन्हे छत्र छाँह है। नाम-(२१८३ ) शिवकवि भाट, असनी। ग्रंथ-स्फुट । रचनाकाल-१९३३। विवरण-साधारण श्रेणी के कवि थे । इनके भड़ौवा सुने गए हैं। देखिए नं. ७३५ । (२१८४ ) बेनीसिंह ठाकुर परसेहँडी, सीतापुर आपका जन्म संवत् १८७६ में हुअा था। आप हिंदी-साहित्य के अच्छे मर्मज्ञ थे। कविजन आपके यहाँ प्रायः श्राया-जाया करते थे। आपने सं० १६३१ में भंगाररत्नाकर-नामक एक संग्रह बनाया था, जो एक लेखक की असावधानी से लुप्त हो गया। आपका देहांत १९४१ में हुआ। आपके पुत्र रामेश्वर बाासिंह भी एक सुकवि थे। इनका भी स्वर्गवास हो गया । (२१८५) हनुमान ये महाशय प्रसिद्ध कवि मणिदेव वंदीजन के पुत्र और काशी के रहनेवाले थे। हमने इनका कोई ग्रंथ नहीं देखा है, परंतु इनके स्फुट छंद बहुतायत से मिलते हैं। इन्होंने शृंगाररस की कविता की है । इनकी भाषा ब्रजभाषा है और वह संतोषदायिनी है । इनकी कविता मनोहर और सरस है। हम इन्हें तोप कवि की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरणार्थ इनके दो छंद नीचे लिखे जाते हैं- ननदी औ जेठानी नहीं हँसती तौ हितू तिनहीं को बखानती मैं ; घरहाई चवाव न जो करती तो भलो श्री बुरो पहिचानती मैं। हनुमान परोसिनि हू हित की कहती तो श्रठान न ठानती मैं ; यह सीख तिहारी सुनौ सजनी रहती कुलकानि तौ मानती मैं ॥१॥ निज चाल सों और जे बाल तिन्हैं कुल की कुलकानि सिखावती हैं। ननदी औ जेठानी हँसावे तऊ हँसी श्रोठन ही लौं बितावती हैं। .