पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२७६

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१२०७ वर्तमान प्रकरण है। हम इस कवि को कथा-प्रासंगिक कवियोंवाली छन कवि की श्रेणो में रखते हैं। उदाहरणार्थ इनके कुछ छंद नीचे लिखे जाते हैं- रामनाम लिखि बाँचन लागे; धिक-धिक करि दोउ भूसुर भागे। सुनि पहलाद वचन कह दीना; मोहि धिक का महिदेव प्रबीना । धिक नरेस जो प्रजा सतावै ;धिक धनवंत उथिरता पावै। धिक सुरलोक लोकप्रद सोई । पुनरागमन जहाँ ते होई। धिक नर देह जरापन रोगा; राम भजन बिन धिक जप जोगा। कोउ कह धिक जीवन गुनहीना ; धौं कह सुत कोउ बिभव बिहीना। सबै असस्य सत्य मत एहा। राम भजन बिनु धिक नर देहा। धिक छत्री जो समर सभीता; वैखानस विषयन मन जीता। धिक धिक तपसी तप करहि, तन कसि मन बस नाहि । परमारथ पथ पाँउ धरि, फिरि स्वारथ लपटाहि । हटकि हटकि हारे निपट, पाक-पटकि महि पानि ; जाय पुकारे राउ पह, बालक सठ हठ खानि । रंध्र मास बीते यहि भाँती ; महा बायु किय प्रकट तहाँती। भयो अधीर पीर तन माहीं ; छिन मुर्छित छिन, रुदन कराहीं। रूप चतुरभुज दीख न आगे ; कहाँ-कहाँ करि रोवन लागे। कीन्हेउ जबर्हि पयोधर पाना ; भूली सुमति मोह लपटाना। जननी उबटन तेल करावा ; अति पुनीत पलना पौदावा । काहिं कीट दुसह दुख पावा; रहै रोय मुख बचन न भावा। कीड़ा करत बालपन बीता; तरुन भए तरुनी मन जीता। भूखन बसन अलंकृत सोहैं । चलै बाम पुनि-पुनि जग मोहैं। फूले फिरत विमोह बस, भूले विषय बिलास; बहु ममतासमता विगत, लखै न खल निज नास।