पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२७४

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वर्तमान प्रकरण १२०५ समझकर नौकरी कर ली । हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं । इनके कुछ छंद नीचे दिए जाते हैं। उदाहरण- सुखद सुजन ही के मान के करनहार, दीनन के दारिद-दवा को जलधर हौ । कहै कवि ललित प्रभाव के प्रभाकर से, बस रसहो के जसही के सुधाकर हौ। आछे रहौ राजन के राज दिगविजैसिंह, धीर-धुरधर सुखमा के मानसर हो; सोभा सील बर हो परम प्रीति पर हो, निगम नीतिधर हो हमारे देवतर हो॥१॥ वगरे जसान युत सगरे विटप बर, सुमन समूह सोहैं अगरे सुबेस को; भौरन के भार डार-हार पै अपार दुति, कोकिल पुकार हरै त्रिविध कलेस को। कहत बनै न कळू ललित निहारिबे मैं, उमहो परत सुख मानौ देस-देस को; जनक सो राजत जनकजू को बाग ताको, ___नंदन सो लागै वन नंदन सुरेस को ॥ २ ॥ मार-लजावनहार कुमार हौ देखिबे. को दृग ये ललचात हैं ; भूले सुगंध सों फूले सरोज से आनन पै अलिहू मड़रात हैं। नेक चले मग मैं पग द्वै ललिते श्रम-सीकर से सरसात हैं; तोरिहौ कैसे प्रसून लला ये प्रसूनहु ते अति कोमल गात हैं ॥३॥ (२१८१ ) गोविंदनारायण मिश्र . ये भाषा के एक अच्छे विद्वान् तथा सुयोग्य लेखक थे। आपका जन्म १९१६ में हुआ था, आपने कई पत्रों का संपादन-कार्य उत्तमता से