पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२७२

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वर्तमान प्रकरण १२०३ (२१७८) नसिंहदास कायस्थ ये. संवत् १९६६ में प्रायः ६५ वर्ष की अवस्था पाकर छवरपूर में मरे । इनकी संतान वर्तमान हैं । ये प्रथम कालिंजर में रहते थे, पर पीछे छतरपुर में रहने लगे। ये वैद्यक करते थे। इनका ग्रंथ 'संतनाम- मुक्तावली' इन्हीं के हाथ का लिखा हमने देखा है। इसमें ६० छंदः हैं, जिनमें दोहे व पद प्रधान हैं। ये साधारण कवि थे। उदाहरण- . संत नाम-मुकतावली, निज हिय धारन हेत; रची दास नरसिंह ने, श्रद्धा भक्ति समेत । हौं नहिं काव्यकलाकुशल, विनय करौं कर जोरि ; छमहु संत अपराध मम, काव्य कलित अति थोरि । (२१७९ ) महारानी वृषभानुकुँवरिजी देवी ये उज़ के वर्तमान महाराजा को पहली महारानी थीं। इनका छोटा पुत्र बिजावर का महाराज है । और इनकी कन्या छतरपुर की महारानी थीं। इनके बड़े पुत्र टीकमगढ़ (उ• का राजस्थान) में थे। इनका शरीर-पात प्रायः६० वर्ष को अवस्था में हुआ था। इन्होंने पदों में रामयश का गान किया है। इनकी कविता वढ़िया है। छत्तरपूर में इनके दपति-विनोद-लहरी (१६ पृष्ठ), वधाई ( पृष्ठ), मिथिलाजी की बधाई (१४ पृष्ट ), बना (२१ पृष्ट), होरीरहस ( 18 पृष्ट), झूलनरहस (२१ पृष्ठ), और पावस (७ पृष्ठ)-नामक ग्रंथ प्रस्तुत हैं । इन सबमें सीताराम का ही वर्णन है । [प्र० त्रै० रि०] में इनके भक्तविरुदावली (१६४२), औरंगचंद्रिका (१९६०) तथा दान- लीला (१९६१) नामक तीन और ग्रंथों का पता चलता है। हम इनको तोष कवि की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरण- रघुवर दीन वचन सुनि लीजै।