पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२७१

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मिश्रबंधु-विनोद विभूषण (१९७४), (२०) गोविंदहजारासंग्रह (१९७५), (२१) अन्योक्ति गोविंद (१९७७), (२२) अलंकारअंबुधि (अपूर्ण), (२३) प्रेम-प्रभाकरसंग्रह (अपूर्ण)। (२१७७ ) रसिकेश ( उपनाम रसिकविहारीजी) इनका जन्म संवत् १९०१ में हुआ था। आप कुछ समय में वैरागी होकर अयोध्या में कनकभवन के महंत हो गए और अपना नाम अापने आनकीप्रसाद रक्खा । वैरागी होने के पूर्व आप पन्ना में दीवान थे। आपने रामरसायन (६०८ पृष्ठ), काव्य-सुधाकर (पृष्ठ १४७), इश्क़ अजायब, ऋतुतरंग, विरहदिवाकर, रसकौमुदी, सुमति- पच्चीसी, सुयशकदम, कानून मजमूत्रा, रागचक्रावली, संग्रहबित्तावली, मनमंजन, संगृहीतसंग्रही, गुप्तपञ्चीसी आदि २६ ग्रंथ रचे हैं। इनके प्रथम दो ग्रंथ हमारे पास इस समय प्रकाशित रूप में वर्तमान हैं। रामरसायन में रामायण की कथा है और काव्य-सुधाकर में छंद, रस, भाव, अलंकार आदि काव्यांगों का अच्छा वर्णन है । इनका शरीर-पात हुए थोड़े दिन हुए हैं। आपका काव्य चमत्कारिक है। हम इन्हें तोष की श्रेणी में रखते हैं । इन्होंने उर्दू-मिश्रित भाषा में भी रचना की है । इनकी रामायण भी अच्छी है। उदाहरण- सूमैं हैं चहूँघा गजराज-से रसाल भू मैं, धूमैं हैं समीर तेज तरल तुरंग ज्यों ; . किसुक गुलाब कचनार औ अनारन के, प्यादे भाँति-भाँति लसँ सहित उमंग त्यों। छाई नव बल्ली छटा छहरि रही है धनी, तेई रथ राजे मोर भ्रमत अभंग क्यों; रसिकबिहारी साज साजि ऋतुराज आयो, छायो बन बाग सेना लीन्हे चतुरंग यों।