पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२६४

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वर्तमान प्रकरण ११६५ स्वाधीनपनो बल बीरज सवै नसै है। मंगलमय भारत भुव मसान द्वै जै है। सुख तजि इत करि है दुःखहि दुःख निवासा, __अब तजहु बीरबर भारत की सब आसा ॥ ५ ॥ यहाँ कवि ने स्वाधीनपनो आदि शब्दों से मानसिक स्वतंत्रता का भाव लिया है न कि राजनीतिक का । यह कवि भारत का अँगरेज़ों से संबंध मंगलकारी समझता था, और राजभक्ति के इसने कई ग्रंथ रचे। इसके विलाप भारतीय मानसिक दुर्घलता-विषयक हैं। (२१७०) तोताराम इनका जन्म संवत् १९०४ में, कायस्थ-कुल में, हुआ था। कुछ दिन सरकारी नौकरी करके इन्होंने अलीगढ़ में वकालत जमाई, जहाँ इनकी आय प्रायः प्रयुत मुद्रा सालाना थी। आप प्रकृति से परम सुशील थे। अलीगढ़ में हम लोगों का इनसे परिचय हुश्रा था, और इन्हें हमने अपना लवकुश चरित्र सुनाया था। इन्होंने कुछ दिन भारतबंधु-नामक साप्ताहिक पत्र भी निकाला । केटो-कृतांत-नासक इन्होंने एक नाटक ग्रंथ बनाया और वाल्मीकीय रामायण का श्राप राम-शामायण-नामक एक उल्था स्वच्छ दोहा-चौपाइयों में बनाते थे, पर वह पूर्ण न हो सका । उसका बालकांड इन्होंने हमें दिया था। हम इनकी गणना मधुसूदनदास की श्रेणी में करेंगे । संवत् १९५६ में इनका शरीर-पात हुआ। (२१७१ ) देवीप्रसाद मुंशी ये महाशय गौड़ कायस्थ मुंशी नत्थनलाल के पुत्र थे। इनका जन्म नाना के घर जयपुर में माघ सुदी १४ संवत् १६०४ को हुआ था। संवत् १९२० से १९३४ पर्यंत ये जवाब टोंक के यहाँ नौकर रहे और संवत् १९३६ से महाराज जोधपुर के यहाँ कर्मचारी हो गए। ये महाशय बहुत दिनों तक मुंसिन रहे, और मनुष्य-गणना आदि का