पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२६०

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वर्तमान प्रकरण १६१ रही है। थोड़े दिन से महारथी, वीणा, त्यागभूमि, विशाल भारत, सम्मेलन-पत्रिका भी सम्मेलन से निकलती है, परंतु उसकी और पत्रिकाओं के समान उन्नत होने की आवश्यकता है । छत्तीसवाँ अध्याय . पूर्व हरिश्चंद्र-काल . .(१९२६-३५) (२१६९) भारतेंदु हरिश्चंद्रजी इनका जन्म संवत् १९०७ में भाद्र शुक्ल ७ को काशीजी में हुआ था। इनके पिता का नाम गोपालचंद्र (उपनाम गिरधरदास) था। ये अग्रवाल वैश्य थे। इन्होंने बाल्यावस्था में पढ़ने में अधिक जी नहीं लगाया । केवल १ वर्ष की अवस्था तक इन्होंने विद्याध्ययन किया, परंतु पीछे से शौकिया बहुत-सी भाषाओं तथा विद्याओं का अभ्यास कर लिया था। इन्होंने बहुत-से स्वदेश-प्रेम के काम किए और हिंदी- गद्य को इनसे बहुत सहायता मिली। इनका चित्त बहुत ही मजाक- पसंद था। पहलीएप्रिल एवं होली को ये विना कुछ दिल्लगी किए नहीं रहते थे। उदारता इनकी बहुत ही बढ़ी-चढ़ी थी, यहाँ तक कि इन्होंने अपने भाग की पैत्रिक संपत्ति बहुत जल्द स्वाहा कर दी। इनका शरीर पात संवत् १९४१ में, काशी में, हुआ। . सत्रह वर्ष की अवस्था से इन्होंने कान्य-रचना श्रारंभ कर दी थी और अंत समय तक ये काव्यानंद ही में मग्न रहे । इनकी रचनाओं का संग्रह छ: भागों में खगविलास-प्रेस से प्रकाशित हुश्रा है । सब मिल- कर इनके छोटे-बड़े १७५ अंथ, इस संग्रह में हैं । प्रथम भाग में 15 नाटक और 1 अंथ नाटकों के नियमों का है। इनमें सत्यहरिश्चंद्र, मुद्राराक्षस, चंद्रावली, भारतदुर्दशा, नीलदेवी, और प्रेमयोगिनी प्रधान हैं । भारतदुर्दशा और नीलदेवी में भारतेंदुली का स्वदेश-प्रेम