पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२५८

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वर्तमान प्रकरण 1958 प्रयाग से हुआ और प्रायः सभी तत्कालीन नामी लेखक उसमें लेख देने लगे। इसके संपादन का भार पहले पाँच सजनों की एक समिति पर रहा और पीछे से केवल बाबू श्यामसुंदरदास बी० ए० को यह काम सँभालना पड़ा । अंत में पंडित महावीर- प्रसाद द्विवेदी ने संपादन-भार उठाया और एक वर्ष को छोड़, जब कि पंडित देवीप्रसाद शुक्ल बी. ए. संपादकत्व के काम पर रहे, द्विवेदीजी इसे बड़ी योग्यता के साथ चलाते रहे, द्विवेदीजी के अवसर ग्रहण करने पर अब इसे पदुमलाल पुनालाल बक्सी तथा देवीदत्त शुक्ल उत्तमता से चला रहे हैं । कमला, लक्ष्मी, सुदर्शन, समालोचक, छत्तीसगढ़-मित्र, राघवेंद्र, मर्यादा, इंदु, यादवेंद्र इत्यादि कई पत्र-पत्रिकाएँ इसी ढंग पर निकलीं, पर स्थिर न रह सकी । स्त्रियों के उपयोगी पत्र-पत्रिकाओं में भारतभगिनी, स्नीधर्मशिक्षक, आर्य महिला, गृहलक्ष्मो और स्वा-दर्पण हैं । स्त्रियोपयोगी पत्र पत्रि: काओं में चाँद बढ़िया है । काशी-नागरीप्रचारिणी सभा एक मासिक पत्रिका, एक त्रैमासिक ग्रंथमाला और एक लेख- माला प्रकाशित करती थी, परंतु अब त्रैमासिक पत्रिका बहुत अच्छे रूप में निकल रही है। देवनागर ने अनेक भाषाओं के लेखों को नागरी अक्षरों में प्रकाशित कर और अन्य उपायों द्वारा हिंदी-भाषा और विशेषतया नागरी लिपि का अच्छा उपकार किया। परंतु हिंदी के दुर्भाग्य से वह स्थायी न हो सका। चित्रमय जगत् हिंदी-पत्रों में बड़े ही गौरव का है । कविता-संबंधी पत्रों में रसिकवाटिका, रसिकमित्र, काव्यसुधाधर, हल्दी-कविकीर्तिप्रचारक, व्यास पत्रिका, काव्य-कौमुदी, कवि इत्यादि कई पत्र निकले, जिनमें कतिपय कषियों की रचनाएँ अच्छी कही जा सकती हैं । जासूस, व्यापारी, खेतीबारी, देहावी, निगमागमचंद्रिका, सद्धर्मप्रचारक, लक्ष्मी, सनातनधर्म- पताका, अवधसमाचार, अमृत, अबला-हितकारक, श्रायंप्रभा,