पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२५४

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वर्तमान प्रकरण १९८५ वर्तमान समय की भाँति टाइप इत्यादि सब सामान था और टाइप जोड़ने का क्रम भी प्रायः आजकल के समान ही था। पुरातत्ववेत्ता अंगरेजों का यह मत है कि यह प्रेस कम-से-कम एक हजार वर्ष को प्राचीन है। इस हिसाब से स्वामी शंकराचार्य के समय तक में प्रेस होने का पता चलता है, फिर भी छापे का प्रचार यहाँ अँगरेज़ी-राज्य के पूर्व बिलकुल न था, और इसी कारण समाचार- पत्र भी प्रचलित न थे। "हिंदी-भाषा के सामयिक पन्नों का इतिहास"- नामक एक ग्रंथ बाबू राधाकृष्णदास ने सन् १८६४ (संवत् १९११ में प्रकाशित कराया था, जो नागरीप्रचारिणी सभा, काशी से अव भी मिलता है। इसमें प्राचीन पत्र-पत्रिकाओं के वर्णन पाए जाते हैं। आशा है, सभा इसका एक नया संस्करण निकालकर आगे का हाल भी पूरा कर देगी। __ सबसे पहला हिंदी-पत्र "बनारस अलवार" था, जो संवत् १६०२ में राजा शिवप्रसाद की सहायता से निकला। इसकी भाषा खिचड़ी थी और सभ्य समाज में इसका आदर नहीं हुआ। इसके संपादक गोविंदरघुनाथ थत्ते थे। साधु हिंदी में एक उत्तम समाचारपत्र निकालने के विचार से कई सज्जनों ने काशी से 'सुधाकर' पत्र निकाला। सबसे पहले परमोत्कृष्ट पत्र जो हिंदी में निकला, वह भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र द्वारा संपादित 'कविवचनसुधा' था, जो संवत् १९२५ से प्रकाशित होने लगा । सुधा पत्र पहले मासिक था, पर थोड़े ही दिनों बाद पाक्षिक होकर साप्ताहिक हो गया। इसकी लेखन-शैली बहुत गंभीर तथा उन्नस थी। इसमें गद्य तथा पद्य में लेख निकलते थे, और वह सभी तरह से संतोषदायक थे। संवत् १९३७ के पीछे भारसेंदुजी ने यह पत्र पंडित चिंतामणि को दे दिया, जिनके प्रबंध से यह संवत् १९४२ तक निकलकर बंद हो गया। संवत् १९२६ में बाबू कार्तिकप्रसाद ने कलकत्ते से 'हिंदी-दीप्ति-प्रकाश' निकाला । यह पत्र