पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२५३

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११८४ मिश्रबंधु-विनोद प्रचुरता से बन जावेंगे, जैसा शीघ्र हो जाने की दृढ़ श्राशा की जाती है, उस समय इन ग्रंथों के बाहुल्य से भी हिंदी की महिमा एवं गौरव में खूब सहायता मिलेगी। आजकल भी ग्रंथ-भंडार की बहुतायत से हिंदी भारत की सभी वर्तमान भाषाओं से बहुत आगे बढ़ी हुई . है। हम अनुचित विषयों पर शोक अवश्य प्रकट करते हैं, परंतु हिंदी के सभी उत्कृष्ट ग्रंथों का समादर पूर्ण रूप से करना बहुत उचित समझते हैं। निदान इस वर्तमान काल में हिंदी ने बहुत अच्छी उन्नति की है और उसकी उत्तरोत्तर वृद्धि होने के चिह्न चारों ओर से दृष्टिगोचर हो रहे हैं । अब हम इस अध्याय को इसी जगह समाप्तप्राय कर इस काल के लेखकों के कुछ विस्तृत वृत्तांत आगे समालोचना, चक्र और नामावली द्वारा लिखते हैं । जिन महाशयों के नाम चक्र अथवा नामा- वली-मान में आए हैं, उन्हें भी हम न्यून नहीं समझते । केवल विस्तार-भय से ऐसा करने को हम बाध्य हुए हैं। इनमें से कतिपय महानुभावों के ग्रंथ देखने अथवा विशेष हाल जानने का भी सौभाग्य हमें नहीं प्रास हुश्रा। इस भाग में संवत् १९२६ से अब तक का हाल लिखा गया है। इसे हमने दो भागों में विभक्त किया है, अर्थात् प्रथम हरिश्चंद्र काल (१६४५ तक) और द्वितीय गद्य-काल (अब तक)। इन दोनों भागों के पूर्व और उत्तरा-नामक दो-दो उपविभाग किए गए हैं। इस प्रकरण के मुख्य विषय को उठाने से प्रथम हम पत्र-पत्रिकाओं का भी कुछ वर्णन करना उचित समझते हैं। समाचारपत्र एवं पत्रिकाएँ हिंदी में प्रेस के प्रभाव से समाचारपत्रों का प्रचार थोड़े ही दिनों से हुआ है । वारन हेस्टिंग्स के समय में संवत् १८३७ के लगभग बनारस जिले में किसी स्थान पर खोदने से दो प्रेस निकले थे, जिनमें