पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२५०

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वर्तमान प्रकरण ११ पौष १६६७ में इसी बात के पुष्ट्यर्थं प्रयाग में एक लिपि-विस्तार-सम्मे- लन हुआ, जिसमें भारतवर्ष के सभी देशों से विद्वान् महाशयों ने मद- रास के जस्टिस कृष्णा स्वामी ऐयर के सभापतित्व में नागराक्षरों के प्रचारार्थ योग दिया, और उन्हें सारे देश के लिये सर्वमान्य ठहराया । अब हिंदी के सुदिन-से आते देख पड़ते हैं । इन सभाओं के अतिरिक्त और भी छोटी-बड़ी सभाएँ यत्र-तत्र नागरी-प्रचारार्थ स्थापित हुई हैं। भारतधर्म-महामंडल और आर्य-समाज आदि धार्मिक सभाएं भी • व्याख्यानों, लेखों, पन्नों एवं ग्रंथों द्वारा हिंदी-प्रचार में अच्छी सहायता कर रही हैं । इन सभात्रों ने सबसे अधिक उपकार व्याख्यानदाता उत्पन्न करके किया है। बहुत-से सनातनधर्मी और प्रार्य-समाजी उपदेशक धारा बाँधकर उत्तम हिंदी में घंटों व्याख्यान दे सकते हैं। इनके नाम समा- लोचनाओं, चक्र एवं नामावली में मिलेंगे । सामाजिक तथा जातीय सभाएं भी हिंदी-प्रचार को अनेक प्रकार से लाभ पहुँचा रही हैं। आजकल हिंदी-भाषा के छापेखाने बहुत हैं और उनकी छपाई भी बढ़िया होती है। उनमें वेंकटेश्वर, लक्ष्मीवेंकटेश्वर, निर्णय-सागर, इंडियन-प्रेस, भारतमित्र, नवलकिशोर-प्रेस, भारतजीवन, भारत, हरि- प्रकाश, खड्गविलास, वैदिक-यंत्रालय, लहरी-प्रेस काशी, वर्मन- प्रेस, गंगा-फाइनार्ट-प्रेत, लक्ष्मीनारायण-प्रेस, बेलवेदियर-प्रेस, हिंदी-प्रेस, रामनारायण-प्रेस, अभ्युदय-प्रेस, हिंदोस्तान-प्रेस, प्रताप- प्रेस, वर्तमान प्रेस ब्रह्म प्रेस इटावा, सनातनधर्म-प्रेस मुरादाबाद, ज्ञान- मंडल-प्रेस काशी, ओंकार-प्रेस, कृष्ण-प्रेस आदि प्रसिद्ध है । हिंदी में एक-मात्र कानूनी पुस्तकें तथा नज़ीरें छापनेवाला कानून-प्रेस, कानपुर भी प्रशंसनीय काम करता है। । समय-समय पर समस्यापूर्ति के लिये स्थान-स्थान पर कवि-समाज सथा मंडल भी स्थापित हुए हैं। उनमें से प्रधान-प्रधान नाम नीचे लिखे जाते हैं-