पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२४२

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वर्तमान प्रकरण १७३ काव्य में इसका प्रचार जल्लूलान तथा सदल मिश्र के समय से विशेष हुआ I राजा लक्ष्मणमिह तथा राजा शिवप्रसाद ने इसे और भी उमति दो। भारतेंदु हरिश्चंद्र तथा प्रतापनारायण मिश्र के समय से गद्य की बहुत ही संतोषदायिनी उन्नति हुई, और इस समय सैकड़ों उत्कृष्ट गद्य-लेखक वर्तमान हैं। इनमें बदरीनारायण चौधरी, गंगाप्रसाद अग्निहोत्री, भुवनेश्वर मिश्र, मेहता तरजाराम, शिवनंदन- सहाय, वजनंदनसहाय, साधुमारणप्रसादसिंह, किशोरीलालगोस्वामी श्यामसुंदरदास, गोचिंदनारायण मिश्र, गदाधरसिंह, अमृतलाल चक्रवर्ती, अयोध्या सिंह, देवीप्रसाद, जगनाथदास (रक्षाकर), गौरीशंकर-हीरा. चंद श्रोझा, गोपालराम, महावीरप्रसाद द्विवेदी, मदनमोहन मालवीय, सोमेश्वरदत्त सुकुल एवं अन्यान्य अनेक परम प्रतिभाशाली लेखक हैं। प्रायः साठ वर्षों से हिंदी में समाचार-पत्र भी निकलने लगे हैं। और इनकी दिनोंदिन उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है। इस समय कई दैनिक पत्र भी हिंदी में निकल रहे हैं। गध में विविध प्रकार के अच्छे और उपकार ग्रंथ लिखे गए, और अनुवादित हुए तथा होते जाते हैं । अँगरेज़ो राज्य का प्रभाव अब बैठ चुका है। इससे भौति- भाँति के नवागत लाभकारी भाव देश में फैल रहे हैं। अँगरेजी-शिक्षा का भी यही प्रभाव पड़ता है ! इसने देशभक्ति की मात्रा बहुत बड़ा दी है। अँगरेज़ा राज्य से जीवन-होड़-प्राबल्य दिनोंदिन बढ़ता जाता है। इससे देशवासियों का ध्यान उपयोगी विषयों की ओर खिंच रहा है। इन कारणों से हिंदी में नवीन विचारों का समावेश खब होता जाता है और विविध विषयों के ग्रंथ दिनोंदिन बनते जाते हैं। यदि यही हाल स्थिर रहा, जैसा कि दृढ़ आशा की जाती है, वो पचास वर्ष के भीतर हिंदी की बहुत बड़ी उन्नति हो जावेगी और इसमें किमी प्रकार के ग्रंथों की कमी न रहेगी। पद्य में खड़ी-बोली का कछ-कुछ प्रचार बहुत काल से चला आता है, जैसा कि ऊपर स्थान-