पड़े। इनकी कविता अनुप्रास-पूर्ण परम विशद होती थी । हम
इन्हें तोष की श्रेणी में रखते हैं।
उदाहरण-
तम नासि अवास प्रकास करै गुन एक गनै नहिं औगुन सारै ;
दिन अंत पतंग दई प्रभुता इन संग पतंग अनेक न जारै।
अतिमित्र के द्रोही बिछोही सनेह के याते सखी सिख मेरी विचारै ;
मनि मंजु धरै ब्रज मंदिर मैं रजनी मैं जनी जनि दीपक बारै|
नाम-(२०९७ ) शिवदयाल कवि पांडे ( उपनाम भेष)
लखनऊ।
ग्रंथ-(१) स्फुट कविता (२) दशम स्कंध भागवत भाषा
करीब १००० विविध छंदों में अपूर्ण |
जन्मकाल-१८६६ ।
कविताकाल-१९२५
विवरण-ये लखनऊ रानीकटरा निवासी कान्यकुब्ज पांडे थे।
इन्हें ज्योतिष में अच्छा अभ्यास था और श्राप कविता
भी सोहावनी करते थे । इनकी गणना तोष कवि की
श्रेणी में है।
चित की हम ऊधौ जु बातै कहैं अवकास अकास न पाइ है जू;
यह सुंग के तुंग तरंगन के उमहे मन कौन समाइ है जू ।
हुरि है हग कोर जु भेष कहूँ तौ अबै ब्रज फेरि बहाइ है जू;
सिगरी यह रावरी ज्ञानकथा कहि कौन को कौन सुनाइ है जू ॥१॥
इस समय के अन्य कविगण
नाम-(२०६८) असकंदगिरि, बाँदा ।
ग्रंथ-(१) असकंदविनोद, (२) रसमोदक (खोज १६०५)
(१६०५)|
कविताकाल-१६१६ ।
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