पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२१०

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परिवर्तन-प्रकरण प्रेम समुद्र बदै वलदेव के चित्त चकोर को चोप चला है; भाव्य सुधा वरपै निकलंक उदै जससी तुही चंद कला है। (द्विज गंग-कृत) दमकत दामिनी लौं दीपति दुचंद दुति, . दरसै अमंद मनि मंदिर के दर से झाँकति झरोखे चलि वान ब्रजराजजू को, सारी सेत सुंदरि सरकि गई सर हैं। द्विज गंग अंग पर अलमै कुटिन लु, सुक्तमाल सहित सुधार कंज कर तें; मानो कढ़यो चंद लै के पन्नग नछन्न बंद, __मंद-मंद मंजुल मनोज मानसर से। हम इनकी गणना तोप कवि की श्रेणी में करेंगे। (२०८९) विड़दसिंहजी (उपनाम माधव) इनका जन्म संवत् १८९७ में अलवर के थंतर्गत किशुनपुर में हुधा था। आप जाति के चौहान हैं। श्रापके पूर्वजों को ३ गाँव दरबार अलवर से मिले हैं, जो अब तक इनके अधिकार में हैं। आपकी कविता सरस होती है। उदाहरण- फोयल कूकतै हूक हिए उठि है चपलान तैं प्रान हरैगे; देखि कै चंदन की मरि लोचन सोचन सों सुवान झरेंगे। माधव पीव की याद दिवाय पपीहरा चित्त को चेत हरेंगे; प्रीति छिपी श्रव क्यों रहिह सखिए बदरा बदनाम करेंगे ॥१॥ कलंक धरै पुनि दोप करै निसि मैं बिचरे रहि बंक हमेस; उदै लखि मित्र को होत मलीन कमोदिनि को सुखदानि विसेस । एखै रुचि माधव वारनी की ययुरे विरहीन को देत बलेस; न जानिए काह विचारि विरंचि घरयो यहि चंद को नाम दुजेस ॥२॥